आवाज़ करती
एम्बुलेंस अभी तक रास्ते पर ही देखी थी! तब भी बहुत घबराहट होती थी उसकी आवाज़ से!
आज ख़ुद बैठे थे उसके स्ट्रेचर के बगल वाली सीट पर हम दोनों! जगह नहीं हो रही थी तो
ड्राइवर ने मुझसे कहा कि स्ट्रेचर पर बैठ जाइये पर मैं नहीं बैठी!
बीच-बीच में
ऑक्सीजन के लिए भी पूछते रहे वो लोग.
लगभग आधे घंटे
में हम हॉस्पिटल पहुँच गए! अंशुल अलग से अपनी गाड़ी से आ गया था!
सारी
फॉर्मेलिटी पूरी हुई और हमे एडमिट कर लिया गया! तुरंत ही दोनो का सी टी स्कैन हुआ.
शर्मा जी का स्कोर 10 और
मेरा ज़ीरो था लेकिन साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी!
एडमिट करने की
प्रक्रिया पूरी होने के बाद नर्स हमें ऊपर रूम में ले जाने से पहले बोली
"जाने से पहले आप लोग अपने बेटे से मिल लीजिये." उस वक़्त बेटा फीस जमा करने गया हुआ था. हमने कहा चलते हैं बाद में
मिल लेंगे तो वह बोली "नहीं! आप लोग इंतज़ार कर लीजिये और मिलकर ही चलिए." उसके इस कथन ने एक ही पल में कोरोना की
भयावह हक़ीक़त सामने ला दी थी!
हम दोनों को एक
ही रूम में बेड दे दिए गए. हॉस्पिटल में इलाज़ चालू हो गया. पहले दिन दो डोज़ दिए गए
रेमिडेसिविर के और अगले पाँच दिन एक-एक देने थे. इसके अलावा भी सारी दवाइयाँ, सलाईन चल रही थी!
हॉस्पिटल से ही
नाश्ते खाने चाय के अलावा सुबह काढ़ा और रात में हल्दी वाला दूध भी दिया जा रहा था.
दिन में तीन से
चार बार भाप लेना और गार्गल करना भी जारी था. यानी सारी पैथी
को साथ लेकर चल रहे थे डॉक्टर... लक्ष्य केवल मरीज का स्वस्थ होकर घर जाना था.
हम दोनों की
हालत में बहुत अच्छा सुधार हो रहा था. 5 मार्च को डॉक्टर कह गए थे कि आज शाम के सी टी स्कैन के बाद सब सामान्य होने
पर दूसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया जायेगा!
शाम को सी टी
स्कैन हुआ और 6 अप्रेल की
सुबह डॉक्टर ने राउंड के समय हम दोनों को डिस्चार्ज नोट दे दिया. बहुत ख़ुशी-ख़ुशी सभी दवाईयां और ज़रूरी
कागज़ात बैग में रखकर तैयार बैठे थे हम घर जाने के लिए. हमारे पास जो भी सामान था हमने वहीं छोड़ दिया था
ताकि ज़रूरतमंदों के काम आ सके जिसमें स्टीम लेने और गर्म पानी करने की इलेक्ट्रिक
वाली केतली आदि थे.
सारी
फॉर्मेलिटी और बिलिंग की प्रक्रिया होते-होते दोपहर के लगभग चार बज चुके थे. हमारा दोपहर का भोजन भी वहीं हो गया था!
तभी अचानक मुझे
बेचैनी सी महसूस हुई और हृदय गति बहुत तेज़ हो गई! इस बैचेनी में भी दिमाग ने समय
पर काम किया. मैंने तुरंत ऑक्सीमीटर में पल्स रेट देखा तो काफी बढ़ा हुआ दिखा!
शर्मा जी तुरंत डॉक्टर को बुला लाये और उसी समय मैं अपने डॉक्टर सारडा सर को फोन
लगाकर बता ही रही थी कि हॉस्पिटल के डॉक्टर रुम में आ गए. उन्होंने तुरंत ई सी जी
किया और कुछ दवाएं दी और मुझे आई सी यू में शिफ़्ट कर दिया!
बता दिया गया
कि दो दिन मुझे आई सी यू में रहना था लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली थी कि हाथ से आई
वी सैट निकाल दिया गया था उसे पुनः नहीं लगाया गया था! पूरे हाथ की नसें ड्रिप
लगने से बहुत तकलीफ में थी!
लोगों की असली
तकलीफें मुझे यहाँ आई सी यू में आकर देखने मिली! जीवन में पहली बार इस जगह को देखा
था! पूरे शरीर में मशीनें, नाक
में ऑक्सीजन पाईप और सिर के पास गूँजती मॉनिटर की तेज़ आवाज़!
रात हो चली थी
अगल-बगल आमने सामने हर तरफ कोरोना के मरीज़ थे! बगल वाले का ऑक्सीजन लेबल बहुत कम
था और वे ऑक्सीजन मास्क हटाकर इधर उधर कर दे रहे थे! ड्यूटी पर उपस्थित सिस्टर
उन्हें हर बार समझाती और बार-बार लगाकर दे रही थी. सारे स्टाफ और विशेषकर
छोटी-छोटी उम्र की उन नर्सों का सेवाभाव मुझे हमेशा याद आता है! हर वक़्त
मुस्कुराते हुए अपने काम को सेवा के भाव और बड़ी लगन से करती, पी पी ई किट के अंदर बंद सभी एक जैसी
लगती! कितनी तकलीफ़ होती होगी इतनी गर्मी में इस पी पी ई किट को पहनकर काम करते हुए
यह सोचकर मन श्रद्धा से भर जाता था उनके लिए!
रात बड़ी लम्बी
हो गई थी लेटा भी नहीं जा रहा था मुझे! ज़रा सी कोशिश भी करती तो पल्स रेट बहुत
नीचे गिरने लगता था! लग रहा था कि किसी से सारी रात बात करके इस रात को काट लूँ
लेकिन बात भी नहीं की जा सकती थी! एक बार सिस्टर से रिक्वेस्ट की कि मॉनिटर की
आवाज़ कम कर दीजिये लेकिन उसने कहा ये ज़रूरी है आपके लिए! डॉक्टर मुझे बार बार सोने
के लिए कह रहे थे पर मुझे नींद कहाँ से आती! थोड़ी-थोड़ी देर में नए मरीज़ आ रहे थे!
आख़िर में डॉक्टर ने कहा "अच्छा ठीक है आप बैठकर आँखें बंद करो और अपनी एक-एक
सांस को महसूस करो." मैंने ऐसा करने की कोशिश की तो
कुछ शांति हुई! ऐसा ही करते-करते सुबह हो गई!
दूसरे दिन आख़िर
सुबह से ड्रिप लगा ही दी गई जो लगभग सात घंटे चली! दवा, ड्रिप और ऑक्सीजन के साथ ये दोनों दिन सकुशल बीत
गए और 8 मार्च की सुबह के
राउंड के बाद हमें डिस्चार्ज मिल गया. शाम को चार बजे तक हम घर आ गए!
इधर घर को
सेनेटाइज़ करवा लिया गया था. छोटी बहन सीमा ने सबकुछ तैयारी करके रखी थी ताकि हम
नहाधोकर आराम कर सकें!
खाने पीने और
सारी देखभाल का पूरा जिम्मा दोनों बहनों सरोज और सीमा ने ले लिया था, उन दोनों ने किसी भी बात की ज़रा सी भी
कमी नहीं होने दी. हर बात का ध्यान रख रही थी ताकि हम जल्द
से जल्द स्वस्थ हो जाएँ! उधर दीपाश्री भी ख़ूब ध्यान रख रही थी! हमारी सुबह,
दोपहर और रात की हर रीडिंग पर नज़र
थी उसकी! डॉक्टर सारडा सर भी बराबर ध्यान दे रहे थे. घर आने के बाद भी हम दोनों का
शुगर लेबल बहुत बढ़ा था, उन्होने
इन्सुलिन और दवा देकर सामान्य लाने के सभी प्रयत्न किये!
घर आये अभी दो
दिन भी नहीं हुए थे कि अंशुल की एक आँख में दर्द और लाली आ गई! दूसरे दिन हल्का
बुख़ार भी आ गया! 11 मार्च
को उसकी रिपोर्ट भी पॉज़िटिव आ गई! अपनी तकलीफों और दर्द से उबर भी नहीं पाए थे कि
बेटे का पॉज़िटिव होना बहुत दुःखी कर गया!
अंशुल के लिए
भी सारडा सर का इलाज़ शुरू हुआ! लगभग चार या पाँच दिन बाद उन्होंने कहा 'यदि कल तक बुख़ार ठीक नहीं हुआ तो अंशुल
को भी एडमिट करना होगा.'
लेकिन ईश्वर की कृपा से उसके बाद
उसे बुख़ार नहीं आया और सारडा सर के ईलाज़ से अंशुल घर पर रहकर ही दवाओं से स्वस्थ
हो गया.
इस कोरोनाकाल
में कोरोना प्रभावित होने पर भी मन में यही विश्वास था कि हमें स्वस्थ होना है और
इसी विश्वास ने हमें कोरोना से जीत भी दिलाई!
कमज़ोरी बहुत
थी! ऐसी कि ब्रश करने, खाना
खाने तक से थकान होती थी लेकिन पौष्टिक प्रोटीन युक्त सादा कम तेल और मसाले का समय
पर भोजन, फ़ल (सेव, संतरे, मौसम्बी, कीवी, नारियल पानी)
आदि समय पर लिए तो कमज़ोरी भी काफी कम हो गई है! खुश्बू भी आने लगी कुछ समय बाद. मुनक्के को हल्का
सा भूनकर उसमें सेंधा नमक डालकर चूसने से मुंह का स्वाद भी वापस आ गया है!
"हम तीनों
ने आइसोलेशन का पूर्णतः पालन किया ताकि हमारे कारण किसी भी व्यक्ति में कोरोना
वायरस का संक्रमण न फैले."
कोरोना से
स्वस्थ होने के पश्चात् भी ध्यान रखने योग्य कुछ ज़रूरी बातें -
पोस्ट कोविड
हेतु डॉक्टर से परामर्श लें और उनकी देखरेख में इलाज़ करवायें, क्योंकि दवाओं के विपरीत प्रभाव के कारण
कई परेशानियाँ हो सकती हैं.
पौष्टिक
प्रोटीनयुक्त भोजन करें.
आराम करें.
हल्का व्यायाम
सामर्थ्य अनुसार करें.
मुंह की सफाई (oral
hygiene) का ख़याल रखें! दिन में कम
से कम दो बार गुनगुने नमक के पानी से और एक बार बेटाडीन से गरारे करें.
दिन में दो से
तीन बार भाप लें
कुछ देर धूप
में अवश्य बैठें.
कोरोना संक्रमण
काल में लोग घबराहट के कारण मनोस्थिति से नियंत्रण खो रहे हैं. ऐसे समय में धैर्य के साथ महामारी का मुकाबला
करना बहुत जरूरी है.
कोरोना की आधी
जंग तो मन से जीती जा सकती है. डाक्टर सभी मरीजों
को बेहतर उपचार देने का प्रयास करते हैं, लेकिन जो लोग मन से भय निकालकर धैर्य और सकारात्मक भाव से रहते हैं,
वे कोरोना से लड़ाई में जीतकर पूरे
समाज के लिए उदाहरण बनते हैं.
वायरल का सीजन
है इसलिए बुखार आते ही कोरोना का भाव मन में लाना उचित नहीं. विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लें व जांच कराएं.
मन में सावधानी
तो रहे लेकिन नकारात्मक भय न आने दें.
कोरोना संबंधित
समाचारों को कम से कम देखें.
सोशल मीडिया पर
आने वाले सभी तथ्य प्रमाणित नहीं होते. स्वविवेक से भी
काम लें. मन में आने
वाले विचारों की तार्किकता पर ध्यान दें.
व्यस्त दैनिक
दिनचर्या रखें. टीवी पर न्यूज की जगह रियलिटी सीरियल,
गेम्स देखें. मनपसंद संगीत सुनें.
जो कोरोना मरीज
स्वस्थ होकर अपना दैनिक जीवनयापन कर रहे हैं, उनसे सीख लेकर स्वयं को सकारात्मक भाव में रखें.
कहानियां,
कविताएं, उपन्यास आदि पढ़कर अपना ज्ञानवर्धन करें.
टीकाकरण करवाकर
स्वयं को सुरक्षित करें व दूसरों को इसके लिए प्रेरित करें.
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कोरोना विजेता के रूप में आपके सामने है संध्या शर्मा जी की कहानी. इसे रश्मि प्रभा जी की वाल से साभार लिया गया है.
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