Monday, 31 May 2021

कोविड उपचार के दौरान का सुखद अनुभव

कोविड के उपचार के दौरान कुछ अच्छे अनुभव हुए, जिन्हें डॉक्टर्स के सम्मान में साझा करना चाहूँगी.


कोविड के लक्षण के अनुसार घर पर उपचार चल रहा था. 12 दिन के बाद तेज़ बुखार उतरा लेकिन उसी दिन साँस में दिक्कत हुई और ऑक्सीजन स्तर 86 से होता हुआ एक बार 78 तक आ गया. बडी मशक्कत के बाद KGMC LUCKNOW के लिंब सेंटर में नये खुले कोविड वार्ड में बेड मिला. तीमारदारों के ठहरने की सुविधा नहीं थी. अगले दिन रात को तीन बजे आंख खुली और महसूस हुआ कि मास्क में ऑक्सीजन नहीं. तुरंत मास्क हटाया तो पता चला कि मैं सांस ही नही ले पा रही थी. किसी तरह उठ कर सुनसान गैलरी में हेलो-हेलो करके आवाज़ लगायी. सन्नाटा देख कर जीवन का अंत नज़र आ रहा था.


अचानक गैलरी में भागते हुए लोगों की आहट सुनी. चार लोग जो ड्यूटी पर थे भागते हुए मेरी ओर आये मुझे बेड पर ले गए. मुझे मॉनिटर से कनेक्ट किया. ऑक्सीजन जिसकी सप्लाई सही थी उसका प्रेशर बढ़ाया और मुझे मास्क लगाया. उसके बाद उन्होंने मॉनिटर को कवर कर लिया ताकि में देख न सकूं. मुझे बैठा कर लंबी लंबी सांस लेने को कहा. इस दौरान जो सबसे बड़ी बात थी वो थी मनोवैज्ञानिक रूप से सम्बल देना. लगभग तीस वर्ष के एक डॉक्टर ने मेरे सर पर हाथ रखा और बोला कि आपको कुछ नहीं हुआ आंटी. आपने कोई सपना देखा है. बस कुछ मत सोचिए लंबी-लंबी साँस लीजिए.


तब एक ने फटाफट मुझे ग्लूकोज़ चढ़ाया और एक ने इंजेक्शन दिया. मुझे उस समय उस डॉक्टर के स्पर्श में एक पिता के स्पर्श की अनुभूति हुई. जब मेरा ऑक्सीजन 91 हुआ तब एक और युवा डॉक्टर लड़की ने मुझे स्क्रीन दिखाया और हँस कर कहा कि देखिए आपका ऑक्सीजन तो बिल्कुल ठीक है. जूस पियेंगी? और उन्होंने टेबल पर रखा जूस मुझे गिलास में करके दिया. इन लोगों ने कोविड में मुझे गले लगाया मैं वो पल भूल नहीं सकती.


ये पल मेरे जीवन में ठहर गए हैं लेकिन अपनी तकलीफ के कारण नहीं, उन जीवन प्रहरियों के कारण. इस अनुभव से एक बात प्रमाणित हुई कि ये जीवन की रक्षा करने वाले पूरी तरह मुस्तैद हैं कुछ एक अपवाद को छोड़ कर. चूंकि वायरस ही खतरनाक है और इसके व्यवहार पर भी अभी समांतर शोध हो रहे हैं. इसलिए उपचार में प्रयोग करना इनकी मजबूरी है लेकिन वो जान बचाने का ही प्रयास है. लापरवाही हरगिज़ नहीं. इन सभी कोरोना योद्धाओं के लिए नतमस्तक हूँ.


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कोरोना विजेता में कोविड उपचार के समय मुस्तैदी से तत्पर डॉक्टर्स की कहानी अपनी जुबानी बता रहीं हैं संध्या सिंह. उनकी बात को सामने रखा है रश्मि प्रभा जी ने. 


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Sunday, 30 May 2021

परिजनों और मित्रों के हौसले से हराया कोरोना को

मित्रो, आज 22 दिन हो गए, होम आइसोलेशन में. पहले से बहुत बेहतर हूँ. खांसी और कमजोरी है, वह भी आपकी दुआओं से और डॉक्टर की बताई दवाओं से दूर हो ही जाएगी. मेरी बड़ी बेटी भी मेरे साथ ही कोरोना संक्रमित रही, वह भी रिकवरी की तरफ है. इस दौरान मेरे मित्र, मेरे सगे-संबंधी, मेरी धर्मपत्नी शशि और बेटा भूपेश भारत (पुणे) लगातार मेरी आक्सीजन बने रहे. फोन पर, संदेश से मेरा हालचाल पूछने वाले मित्र मेरी हिम्मत और मेरा मनोबल निरंतर बढ़ाते रहे.


अंजू शर्मा और सन्दीप तोमर तो शुरुआती दिन से ही मेरे संपर्क में रहकर हर तरह की मदद को तत्पर रहे. पंजाबी की प्रख्यात लेखिका अजीत कौर, उपन्यासकार नछत्तर, वरिष्ठ कवि मोहनजीत के साथ साथ कवि-उपन्यासकार बलबीर माधोपुरी, कथाकार बलविंदर सिंह बराड़ जैसे अनेक पंजाबी लेखकों-कवियों ने राब्ता बनाये रखा और इस जंग को जीतने की हल्लाशेरी देते रहे. हिंदी कथाकार मित्र बलराम अग्रवाल, कवयित्री कथाकार वन्दना गुप्ता, शोभा रस्तोगी, मधुकांत जी, डॉ. रूपदेव गुण, अनिल शूर आजाद, व्यंग्यकार दीपक मंजुल, कथाकार एवं ग़ज़लकार अशोक वर्मा, कथाकार राम कुमार घोटड, प्रकाशक पुनीत शर्मा (भारत पुस्तक भंडार), नीरज मित्तल (भावना प्रकाशन) समय समय पर मुझे बूस्ट करते रहे.


डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति और डॉ. श्याम सखा श्याम तो मेरे और मेरे बेटी के डॉक्टर रहे जिनकी मेडिकल एडवाइस से इस कठिन समय से बाहर निकलने में हमें भरपूर मदद मिली. डॉ. दीप्ति तो स्वयं फोन करके हम दोनों की प्रगति पूछते रहे. फेसबुक के बहुत सारे मित्र मुझे और मेरी बेटी को लेकर चिंतित रहे और दुआएं करते रहे कि हम दोनों जल्द स्वस्थ हों.


मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ. इस भयावह समय में आप सब भी परिवार सहित स्वस्थ रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ.


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सुभाष नीरव कोरोना संक्रमण के दौरान अपने परिजनों और मित्रों का आभार व्यक्त करते हुए सभी से सुरक्षित रहने की अपील की है. कोरोना विजेता की इस कड़ी में उनसे मिलवाने का कार्य किया है रश्मि प्रभा जी ने. 


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Saturday, 29 May 2021

पारिवारिक एकता और सहयोग की मिठास से हारा कोरोना

इस बार की सर्दियाँ हर बार से अधिक निर्मम थीं. पीठ और घुटने का दर्द चैन से बैठने नहीं देता था. रोज़ सुबह होने के बाद गृहस्थी के और अपने वहाट्सएप ग्रुप्स के रोज़ के टास्क निपटाते-निपटाते कब रात आ जाती पता ही नहीं चलता. इस बीच बरखा के फाइनल इम्तहान भी गुज़रे. त्यौहार से पहले की साफ़-सफाई और पकवान बनाने का दौर भी गुज़रा और होली का त्यौहार भी गुज़र गया. बहुत थक चुकी थी और सोचा था होली के बाद सिर्फ आराम ही आराम करूँगी लेकिन सोचा हुआ होता कहाँ है.


एक अप्रैल से हमारी मेड, जो वैसे भी एक ही टाइम आती है, उसे बुखार आ गया और उसने काम से छुट्टी ले ली. मैंने उसकी बेटी से कहा, मम्मी का कोरोना टेस्ट ज़रूर करा लेना और उसने मुझे आश्वासन दिया कि उनका टेस्ट करा लिया है, टेस्ट में कुछ नहीं आया. बस उन्हें कमज़ोरी बहुत हो गयी है इसलिए डॉक्टर ने आराम करने को कहा है.


मेड की अनुपस्थिति में झाडू, बर्तन, कपड़ों का काम भी आ गया. 6 अप्रैल को जब वो काम पर आई तो मन गदगद हो गया. थकान के मारे बुरा हाल था. सोचा अब कम से कम झाडू पोंछा, बर्तन, कपड़ों के काम से तो छुटकारा मिल जाएगा. इस बीच मुझे हल्की सी खाँसी हो गयी थी. 7 अप्रैल को दिन में कम्प्युटर पर काम करते करते वहीं मेज़ पर सर रख कर मैं निढाल सी लेट गयी. बरखा ने माथा छुआ तो बोली, “दादी आपका बदन गरम हो रहा है.” मैंने कोई ख़याल नहीं किया. शाम को चाय बनाने के बाद जब रात के खाने की तैयारी में व्यस्त थी तो मुझे अनुभव हुआ कि सर घूम रहा है. थर्मामीटर लगा कर बुखार चेक किया तो १०१ डिग्री निकला.


राजन (हमारे पतिदेव) को बताया तो उन्होंने एक पैरासीटामोल दे दी. दवा खाने के बाद किचिन का काम निबटा कर मैं सो गयी. सुबह उठी तो बड़ी कमज़ोरी महसूस हो रही थी. रश्मि, मेरी छोटी बहू जो दिल्ली में रहती है, से बात हुई तो उसने भी कहा आपकी आवाज़ से लग रहा है कि आपकी तबीयत खराब है. हमने कहा ऐसे ही थोड़ी सी खाँसी है, दवा खा ली है ठीक हो जायेगी, कोई ख़ास बात नहीं है. भारतीय गृहणियाँ वैसे भी बहुत टफ होती हैं. इससे भी अधिक खराब तबीयत में न जाने कितनी बार इससे भी अधिक काम किये हैं तो छोटी-मोटी तकलीफों को तवज्जो देने की आदत नहीं रही कभी.


बुखार दूसरे दिन भी नहीं उतरा था. राजन पाबंदी से हमें अपनी दवाइयाँ दे रहे थे. उन्हें हल्की-फुल्की बीमारियों के इलाज का अच्छा अनुभव है और दवाओं की काफी जानकारी भी है इसलिए घर में छोटी-मोटी तकलीफ के लिए सब उन्हें ही अप्रोच करते हैं.


पैरासीटामोल खाकर हमारा बुखार कुछ देर के लिये उतर तो जाता था लेकिन फिर चढ़ जाता था. खाँसी भी तेज़ होती जा रही थी. किचिन में काम करते करते अक्सर आँखों के आगे अँधेरा सा छा जाता. हमें लगता हमारा बी पी लो हो गया है. थोड़ी देर को आकर लेट जाते और कुछ देर बाद फ़िर उठ जाते. राजन कन्सल्टैंट इंजीनियर हैं उन्हें रोज़ क्लाइंट के यहाँ साइट पर जाना होता था. वहाँ फ़र्नेस इरेक्ट हो रही थी. सुपरविज़न बहुत ज़रूरी था. १० अप्रैल तक हमारा बुखार बिलकुल उतर गया. खाँसी तो वैसे भी १०-१५ दिन ले ही लेती है, ठीक होते होते, तो हम निश्चिन्त हो गये.


दो-तीन दिन बाद रश्मि से फ़िर बात हुई. खाँसी की वजह से हम ठीक से बोल ही नहीं पा रहे थे. अब तो वह बहुत चिंतित हो गयी. यह १४ अप्रैल की बात है. उसने बहुत ज़ोर देकर कहा कि आप अपना कोविड टेस्ट करवाइये तुरन्त. प्राइवेटली घर पर बुला कर टेस्ट करवाना यूपी में एकदम से बैन था. सरकारी अस्पतालों में ज़बर्दस्त भीड़ थी. किसी को कोरोना न हो रहा हो तो वहाँ जाकर संक्रमित होकर ही लौटे. १५ अप्रैल को किसी तरह से घर पर ही कोरोना टेस्ट का इंतज़ाम हुआ. कैसे हुआ यह सरन और रश्मि ही जानें.


अभी तक सारा फ़ोकस हम पर ही था. जब घर पर ही टेक्नीशियन आ गया तो सरन, मेरा छोटा बेटा और रश्मि दोनों ने इनसिस्ट किया कि पापा का भी टेस्ट करवा लेना. टेक्नीशियन ने दोनों का रेंडम टेस्ट भी किया और आरटीपीसीआर वाला टेस्ट भी किया. रेंडम टेस्ट की रिपोर्ट हम दोनों की ही निगेटिव आई. घर में जश्न का सा माहौल हो गया. बच्चों को भी मीठी झिड़की मिल गयी कि बिना बात को इतना शोर मचाया लेकिन आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट १७ अप्रैल को आई. दिन में लंच के समय रश्मि का फोन मेरे पास आया. उसने बताया कि आपकी रिपोर्ट तो निगेटिव है लेकिन पापा की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है.


मेरा दिल धक् से बैठ गया. रश्मि देर तक मुझे हिदायतें देती रही कि इन्हें आइसोलेशन में रखना होगा तो किन बातों का ध्यान रखूँ. अब मुझे बरखा की चिंता हुई. उसे उसकी मम्मी के पास जल्दी से जल्दी पहुँचाना था. इन पर खीझ भी हो रही थी कि कोरोना काल में जब सब घर से काम कर रहे थे तो इन्हें ही क्यों रोज़ जाना पड़ता था. वहीं से कहीं से संक्रमित होकर आये होंगे. गनीमत यही थी कि ऑक्सीमीटर में हम लोगों का ऑक्सीजन लेविल ठीक आ रहा था. 8 मार्च को हमें वैक्सीन का पहला शॉट लग चुका था. 6 अप्रैल को दूसरी डोज़ लगनी थी लेकिन 28 दिन की लिमिट बढ़ा कर डेढ़ महीने की कर दी गयी थी. हम अपना नंबर आने का इंतज़ार कर रहे थे कि बीच में यह आफत आ गयी.


खैर, दिल्ली की एक कंसलटेंट डॉक्टर को सरन और रश्मि ने अप्रोच किया. उनके साथ ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस कॉल हुई और घंटे भर के अन्दर ढेर सारी दवाएं, वेपोराइज़र, फल-फ्रूट, नारियल पानी के क्रेट्स और खाने पीने के विविध प्रकार के सामानों का अम्बार घर में लग गया. दो दिन तक हम दोनों के कई ब्लड टेस्ट हुए और हम दोनों का कोरोना का ट्रीटमेंट विधिवत आरम्भ हो गया. मैंने अपना विरोध भी जताया कि जब मेरी रिपोर्ट निगेटिव है तो मैं दवा क्यों खा रही हूँ लेकिन डॉक्टर का कहना था कि सिम्पटम्स तो मुझे भी हैं ही इसलिए मुझे भी दवा खानी ही होगी. राजन की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और उनकी देखभाल मुझे ही करनी होगी तो एहतियातन मुझे भी पूरा कोर्स लेना होगा.


राजन को एक कमरे में क्वारेंटाइन कर दिया गया. बरखा और मैं भी अलग-अलग कमरों में सोये. रात भर चिंता के मारे मुझे नींद नहीं आई. ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी दलदल में गहरे धँसती जा रही हूँ. बरखा को उसकी मम्मी के यहाँ भेजना था इसलिए उसका टेस्ट कराना भी ज़रूरी था कि वह पूरी तरह से स्वस्थ है या नहीं. १७ तारीख को एक बार फिर रेंडम टेस्ट हुआ मेरा, बरखा का और मेरी देवरानी पिंकी का. तीनों की ही रिपोर्ट निगेटिव आई. अब हमें पूरा विश्वास हो गया कि हम बिलकुल ठीक हैं, तबीयत राजन की खराब है और अब हमें सब कुछ छोड़ कर इनकी अच्छी तरह से तीमारदारी करनी है. इनके खाने-पीने, दवा, इलाज और आराम का विशेष ध्यान रखना है. उसी दिन डॉक्टर के साथ फिर से ऑनलाइन मीटिंग हुई. उन्होंने अविलम्ब हम दोनों का ही सीटी स्कैन कराने का निर्देश दिया.


18 तारीख की सुबह हम दोनों भतीजे आनंद के साथ एक्स रे के लिए गए. तब तक हम स्वयं को पूर्ण स्वस्थ और इन्हें बीमार मान कर चल रहे थे. इन्हें कार में पीछे की सीट पर अकेले बैठाया और मैं आनंद के साथ फ्रंट सीट पर बैठी. इनके मास्क और ग्लव्ज़ सबका विशेष ख़याल था कि ज़रा भी हटें नहीं. इनके हर हाव-भाव पर नज़र थी कि इन्हें किसी तरह की थकान या परेशानी तो नहीं हो रही है. दिन में बारह बजे तक रिपोर्ट आ गयी सी टी स्कैन की और उसने सारी तस्वीर ही उलट दी. इनकी एक्स रे रिपोर्ट बिलकुल क्लीयर थी लेकिन मेरे लंग्स में निमोनिया का पैच था और कोरोना वायरस के होने की चेतावनी थी. इस रिपोर्ट के आने के बाद यह सिद्ध हुआ कि हम तो इनसे भी अधिक संक्रमित हैं और हमें अधिक देखभाल की ज़रुरत है. निमोनिया के इलाज के लिए नेबुलाइज़ेशन भी शुरू हो गया.


हमारी छोटी देवरानी पिंकी ने हमें किचिन के काम से बिलकुल फ्री कर दिया. रोज़ सुबह का नाश्ता और खाना बड़ी पाबंदी से वो बनातीं और आग्रह करके खिलातीं. हमारे भी संक्रमित होने की रिपोर्ट आने का एक फ़ायदा यह हो गया कि अब इन्हें आइसोलेशन में अलग कमरे में रहने की बाध्यता नहीं रही. बरखा को उसकी मम्मी के पास भेज दिया था. अब घर में सिर्फ हम दोनों ही थे तो डाइनिंग टेबिल पर साथ बैठ कर चाय-नाश्ता करते, खाना खाते, एक साथ बैठ कर टीवी देखते, एक दूसरे का टेम्प्रेचर लेते और चाय के कप में तूफ़ान लाने वाली राजनीतिक सामाजिक मुद्दों पर बहस करते. दवाएं देने की ज़िम्मेदारी मेरी थी. दिन में चार बार स्टीम लेने के लिए इन्हें रिमाइंड करना, गरारे का पानी गरम करके देना और कहीं ठंडा न हो जाये इसलिए बार-बार याद दिलाना मुश्किल काम था. दिन में तीन बार मुझे नेबुलाइज़ करने के लिए ये मुस्तैदी से ड्यूटी निभाते थे. गले में कफ की वजह से इन्हें भी कुछ परेशानी हो रही थी, तब तीन दिन तक दिन में दो बार इन्हें भी नेबुलाइज़ करने की सलाह डॉक्टर ने दी.


बीमारी के कारण आराम तो किया लेकिन किन हालात में किया और कितना किया यह ईश्वर ही जानता है. हम दोनों को वैक्सीन की एक डोज़ लग चुकी थी इसलिए शायद हमारा संक्रमण बहुत अधिक गंभीर नहीं हुआ. ऑक्सीजन लेवल इनका तो ९७ से नीचे कभी नहीं गया. मेरा ९५ से नीचे नहीं गया. जिन दिनों बुखार था उन दिनों तो ज़रूर ९३-९४ तक आ गया था लेकिन तब यही सोच रहे थे कि कमज़ोरी के कारण ऐसा हुआ होगा. बुखार उतरने के बाद यह फिर से ९६-९७ आने लगा था.


खैर दवाइयां खाते-खिलाते, एक दूसरे को सहेजते-सम्हालते और एक-दूसरे के साथ नोक-झोंक करते ये दिन भी बीत ही गये. ईश्वर की कृपा से और बच्चों की मुस्तैदी से सही वक्त पर इलाज आरम्भ हो गया तो कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं हुआ. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि हम दोनों ने कभी भी हताशा, निराशा या अवसाद को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. घबरा कर फोन पर चिंता व्यक्त करने वाले रिश्तेदारों को हम ही सांत्वना देकर समझाया करते थे. देखो हमारी आवाज़ कितनी नार्मल है. ऑक्सीजन लेवल कितना बढ़िया है. आजकल कितनी खातिर हो रही है. हा..हा..हा.


३० अप्रैल को हमारे सेल्फ क्वारेंटीन की अवधि समाप्त हुई. काफी दवाएं भी उस दिन तक समाप्त हो गयीं थीं. एक मई को हमने सारे घर को मेड की सहायता से सेनीटाइज़ किया. खिड़की, दरवाज़े, कुंडी, चटकनियाँ सब अच्छी तरह से साफ़ करके सेनीटाइज़ करवाए. परदे, चादरे, तौलिये, कवर्स सब चेंज किये और एक नॉर्मल दिनचर्या की ओर कदम बढ़ाया.


कोरोना से इस जंग में परिवार की एकजुटता, सद्भावना और सहयोग ने हमें बहुत सहारा दिया. देवर राजेश, देवरानी पिंकी, भतीजा आनंद हर समय हमारी किसी भी आवश्यकता को पूरा करने के लिए कंधे से कंधा मिला कर खड़े मिलते थे. सरन और रश्मि दिल्ली में ज़रूर थे लेकिन इलाज की हर स्टेप पर उनकी पैनी नज़र थी. डॉक्टर से मीटिंग्स अरेंज करना, टेस्ट की रिपोर्ट कलैक्ट करना, डॉक्टर से सलाह मशवरे करना, फिर डॉक्टर की हिदायतों को हम तक पहुँचाना और उन्हें कार्यान्वित कराना सारा दायित्व उन लोगों ने उठा रखा था. दवाएं लेने के समय पर रोज़ दिन में कई बार वीडियो कॉल करके रश्मि सुनिश्चित करती थी कि हम लोगों ने दवाएं समय से खा ली हैं या नहीं या कोई दवा कम तो नहीं है.


अमेरिका में बैठे मेरे बड़े बेटे-बहू शब्द और कविता दिन में कई कई बार फोन करके मिनिट-मिनिट की रिपोर्ट लेते थे और हर टेस्ट की रिपोर्ट पर उनकी भी पैनी नज़र रहती थी. हम दोनों से बात करके, सरन और रश्मि के साथ डिस्कस करके वो लोग भी हर मिनिट का अपडेट लेते रहते थे और हर वक्त अलर्ट रहते थे. सशरीर यहाँ उपस्थित न होने की बेचैनी उनकी आवाज़ से झलकती थी. परिवार की क्या अहमियत होती है, विपदा के समय में उसकी क्षमता और सामर्थ्य कितनी बढ़ जाती है, इसका मधुर फल इन कुछ दिनों में चखने को खूब मिला. सबका कितना भी आभार मान लूँ अकिंचन बौने शब्द उन्हें कभी व्यक्त कर ही नहीं पायेंगे.


अपनी मेड का धन्यवाद यदि नहीं करूँगी तो यह उसके प्रति घोर अन्याय होगा. मैंने हम लोगों के संक्रमित होने की खबर मिलते ही उसे मना किया था काम पर आने के लिए लेकिन उसने पूरी निष्ठा के साथ अपनी ड्यूटी निभाई. एक दिन भी नागा नहीं की. हम लोगों के बर्तन भी माँजे, कपड़े भी धोये, कमरों में सफाई भी की. मैंने उसे डबल मास्क लगा कर काम करने की हिदायत दी थी. नहीं आना चाहती तो कोई उसे दोष नहीं देता बल्कि मैंने तो उसे कहा भी था कि हम दोनों बीमार हैं, तुम्हारे पैसे भी नहीं कटेंगे, तुम चाहो तो मत आओ लेकिन उसने दोनों हाथ जोड़ कर यही कहा कि उसे भगवान् पर भरोसा है. हमारी परेशानी में वह सारा काम छोड़ कर घर नहीं बैठेगी. मेरे हृदय में उसके लिए बहुत कृतज्ञता का भाव है. मानवता की शायद यही सबसे बड़ी मिसाल है.


कोरोना का संकट आया भी और गुज़र भी गया लेकिन यह गुत्थी अभी तक नहीं सुलझ पाई कि कौन किससे संक्रमित हुआ? संक्रमण क्लाइंट की फैक्ट्री से घर में आया या मेड ने मुझे संक्रमित किया और फिर मुझसे इन्हें यह प्रसाद मिला? लेकिन अब हम सभी ठीक हैं. अंत भला तो सब भला.

 

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साधना वैद जी की कहानी को कोरोना विजेता की कड़ी में प्रस्तुत किया है रश्मि प्रभा जी ने. कैसे पारिवारिक एकता और सहयोग के चलते बिना घबराये कोरोना संक्रमण से मुक्त हुआ जा सकता है, इसे साधना जी ने दिखाया है. 


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विश्वास और आयुर्वेद से पोस्ट-कोविड समस्या का किया समाधान

आत्म कथ्य

2 अक्टूबर 2014 को श्री सतीश कुमार HCS वर्तमान में ओ एस डी मुख्यमंत्री हरियाणा की प्रेरणा से मंडी डबवाली से शुरू हुआ सफाई अभियान समय व सुविधा अनुसार आत्मसंतुष्टि के लिए जारी था. उसी क्रम में 1 सितंबर 2020 में श्रीमती संगीता आईएएस कमिशनर मैडम के नेतृत्व में सिरसा जिला में शुरू किया. 2 अक्टूबर 2020 को एक दिन एक पार्षद एक वार्ड सफाई कार्यक्रम का सफल आयोजन किया. 19 20 अक्टूबर 2020 को जिला सचिवालय सिरसा में नगर परिषद के सहयोग से सफाई का कार्यक्रम रखा.


20 अक्टूबर दोपहर लंच से पूर्व जब मैं कार्यरत था तो मुझे थकावट व बुखार का अहसास हुआ परन्तु घर पर सभी के रोकने के बावजूद कार्य को पूर्ण करने के लिए लंच बाद मैं पुनः चला गया. उसी रात्रि में अचानक तबीयत ज्यादा खराब हो गयी. 21 अक्टूबर को डबवाली सफाई कार्यक्रम में शामिल होने की क्षमता नहीं थी. अति विश्वशनीय व स्नेही 5 चिकित्सकों से परामर्श किया. सभी टैस्ट नार्मल थे. बुखार, जुक़ाम, खाँसी को वायरल डायग्नोज किया गया.


10 दिन के ट्रीटमैंट से स्वस्थ हुआ मग़र जीवन मे पहली बार गतिविधि बेडरूम टू बाथरूम तक सीमित हो गयी. प्रकृति, पक्षी, संगीत व पुस्तकों को साथी बनाया. नवम्बर 2020 के अंतिम सप्ताह बेटी डॉ प्रियनन्दिनी, दामाद डॉ सन्दीप हिमाचल से मिलने आये. सांस चढ़ने तथा खाँसी की वजह से मेरे इनकार करने के बाबजूद अपने साथ हिमाचल ले आये. 2 दिसम्बर को चेकअप का नया दौर शुरू हुआ. एक्सरे, सीटी टैस्ट सभी हुए. कोविड की रिपोर्ट नेगेटिव रही. एक्सरे व सिटी डॉक्टर्स के पैनल की निगाह से सामान्य नहीं थे.


14 जनवरी 2021 को सुपर स्पेशलिस्ट डॉ एस के जिन्दल चंडीगढ़ से कंसल्ट किया. मामला उन की रॉय में ये पोस्ट कोविड लँगज फोब्रेसिस था यानि सीरियस. मैडिसन शुरू हो गयी. कुछ रिलीफ़ महसूस होने लगा परन्तु दिनचर्या सामान्य नहीं थी. दोनों चिकित्सक व धर्मपत्नी त्रिवेणी सुबह से रात तक साये की तरह साथ रहे. अंत में आयुर्वेद की शरण में जाने का निर्णय लिया. ग्वालियर से पतंजलि के सर्वोत्तम चिकित्सक विजेंद्र श्रीवास्तव से परामर्श किया. औषधियाँ बहुत कठनाई से एकत्रित की परन्तु 15 दिन बाद मैं 3000 से 4000 कदम चलने लगा.


प्रभु कृपा, सभी शुभचिन्तनकों की दुआओं से काफी बेहतर महसूस कर रहा हूँ. ये आत्मकथ्य है 20 अक्टूबर 2020 से 20 अप्रैल 2021 तक का. कृत संकल्प है शीघ्र स्वस्थ भारत स्वच्छ भारत के अपने कार्य पर लौट आऊँगा.

मैं गया वक्त नहीं हूँ कि लौट के न आ सकूँ.


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कोरोना विजेता के रूप में वियोगी हरि शर्मा पारीक जी के आत्मकथ्य को रश्मि प्रभा जी द्वारा प्रस्तुत किया गया. परिजनों के सहयोग और आयुर्वेदिक उपचार से वियोगी जी कोविड और पोस्ट-कोविड से स्वस्थ हुए. 


वियोगी हरि शर्मा पारीक जी से मिलने के लिए यहाँ क्लिक करें. 


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Friday, 28 May 2021

वैक्सीनेशन और विश्वास से स्वस्थ होकर कहा इति कोरोना कथा

23 अप्रैल को हमने और निवेदिता ने कोवीशील्ड की दूसरी डोज़ लगवाई। 25 अप्रैल को हमें मामूली बुखार हुआ। उसी रात बुखार 100 पार हुआ। 26 को हमारी स्मेल चली गई। अब हम दहशत में आ गए। तुरंत अपने बड़े भाई जो डॉक्टर है और वर्तमान में CMS भी है, उनसे बताया. उन्होंने छूटते ही कहा, कोरोना पॉजिटिव हो गए हो और दवायें शुरू कर दी मेरी, न्यूनतम और अतिआवश्यक वाली।


28 अप्रैल को निवेदिता भी आ गई मेरा साथ देने, उन्हें भी बुखार और स्मेल गायब। वही दवाएं अब ×2 हो गईं। 29 को RTPCR कराया, दोनो पॉजिटिव निकले।


घर मे कोई मेड नहीं, कोई हेल्प नहीं. सरकारी व्यवस्था के तहत घर के बाहर पीला पोस्टर और लगा गये सब, अलीबाबा चालीस चोर की मरजीना की तरह।


एक दूसरे का बुखार और ऑक्सीजन देखते, नापते 7 मई आ गई। मैं काफी ठीक हो चुका था तब तक। लेकिन स्मेल नहीं आई थी। जब बुखार नहीं आया दुबारा तो 10 मई को फिर टेस्ट कराया सिर्फ अपना. हम फिर पॉजिटिव रहे।


अब हम दोनों का टेस्ट 18 मई को होना है. उम्मीद तो पूरी है कि अब नेगेटिव ही आ जाएंगे। फिलहाल हम दोनों ठीक है।


निवेदिता को वीकनेस काफी हो गई। इस बीच वो सारा अपना रूटीन भी करती रही, खाना पीना पूजा पाठ सब और साथ में हमारी नर्सिंग भी।


यह शर्तिया वैक्सीन लगी होने का परिणाम रहा कि हम दोनों को कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं हुआ।


10 मई तक जब तक हम लोग लगभग ठीक नहीं हुए तब तक हम लोगों ने किसी को नहीं बताया, यहां तक कि पापा, मम्मी, छोटे भाई तक को नहीं। बस बड़े भाई से बात होती रही, उनकी दवा और टेलिफोनिक निर्देशों से ही हम लोग ठीक हो गए।


कल काजल साहब ने लिखा था कि घर मे एक डॉक्टर जरूर होना चाहिए. इसका एहसास तो पहले भी कई बार हुआ है और इस महामारी में अच्छे से हो गया। चौबीसों घण्टे यह कॉन्फिडेंस रहता था कि इमरजेंसी हुई तो भाई के अस्पताल में जाकर भर्ती हो जाएंगे। (बेड और ऑक्सीजन की मारामारी सुन सुन कर बहुत भयभीत रहे हम लोग)


आफिस में तो इत्तिला करना जरूरी था, फिर तो वहां से भी दिन भर लोग हाल पूछते रहे। आसपास बहुत सी बुरी खबर सुन सुन कर मन खराब तो बहुत हुआ कई बार पर बस हिम्मत हौसला जुटाए रखा हम दोनों ने।


कृपया सभी लोग वैक्सीन अवश्य लगवाएं और बहुत एहतियात बरतें।


हम लोगो को कहां और कैसे इन्फेक्शन लग गया, आज तक समझ नहीं आया। आफिस से ही कहीं कुछ हुआ होगा।


इति कोरोना कथा।


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कोरोना विजेता के रूप में रश्मि प्रभा जी आज मिलवा रही हैं अमित कुमार श्रीवास्तव जी से. उन्होंने सपत्नीक कोरोना संक्रमण से स्वयं को विश्वास और वैक्सीन के द्वारा मुक्त किया. 

अमित कुमार श्रीवास्तव से मिलने के लिए यहाँ क्लिक करें.


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सद्भाव, सहयोग से हुए स्वस्थ

परिवार के हम तीनों लोग आज कोरोना-फ्री घोषित कर दिए गए. 21 अप्रैल को पत्नी को एक अस्पताल जाना पड़ा, जिसके दो फ़्लोर कोविड फ़्लोर थे साथ में बेटा गया था. लौटने के बाद से ही बेटा और पत्नी हर एहतियात मसलन सैनिटाइज़र, डबल मास्क्, स्प्रे, साबुन से हाथ थोना... बरत रहे थे कि कहीं कोरोना ना पकड़ लाए हों. छठे दिन बेटे का कोरोना टैस्ट करवाया क्योंकि उसे अस्पताल में इधर-उधर भागदौड़ करनी पड़ी थी. 28 तारीख़ को उसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई. तुरंत डॉक्टर से बातचीच के बाद उसे एक कमरे में आइसोलेट कर दिया.


हम पति-पत्नी ने अपनी मेड सहि28 तारीख़ को ही कोरोना टैस्ट करवाया. 30 को मेड की रिपोट नेगेटिव आई, हम दोनों पति-पत्नी की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई. मेड हमारे यहाँ क़रीब 17 साल से कार्य कर रही है. सुबह आती है, शाम को जाती है. परिवार के सदस्य की ही तरह है. उसने हमारे आइसोलेशन पीरियड के दौरान पूरा समय यहीं रहने पर सहमति दी.


डॉक्टर से बात की और हम दोनों अलग से दूसरे कमरे में आइसोलेट हो गए. 5 दिन बाद हम तीनों का सीटी स्कैन हुआ. तीनों को निमोनिया डिक्लेयर किया गया. पारिवारिक डॉक्टरों ने भी रिपोर्ट देखी और कहा कि निमोनिया बहुत मामूली सा है जो कितसल्ली की बात थी. रक्तजांच की रिपोर्ट भी आ गईं. डॉक्टर ने उसके हिसाब से दवा जारी की. 5 दिन बाद दूसरी बार रक्तजांच की रिपोर्ट मंगवाई और बताया कि होम क्वारंटाइन 17 दिन तक जारी रखिए. उसके बाद ICMR की गाइडलाइन्स के अनुसार होम क्वाकरंटाइन से रिलीज़ कर दिए जाएंगे, बशर्ते कोई कोरोना लक्षण पिछले 10 दिन में न रहे हों. कोरोना टैस्ट की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कोरोना से रिकवर होने के बाद भी कई हफ़्ते तक रिपोर्ट पॉज़िटिव आ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर में RNA traces रहने के पूरे चांस होते हैं.


पत्नी को पहले 3 दि एक-एक बार बुखार रहा जो 101 से नीचे रहा. बेटे को केवल पहले दिन बुखार हुआ. मुझे कभी कोई लक्षण नहीं रहे. मेड, मुस्लिम महिला है. इस बीच ईद भी आई, हमने प्रस्ताव रखा किएक दिन का खाना बना कर रख जाइए, हम मैनेज कर लेंगे. उसने हमारा प्रस्ताव ठुकरा दिया और जीवन में पहली बार हमारे कारण ईद नहीं मनाई. उसके प्रति हमारे पास कृतज्ञता के शब्द नहीं हैं. 


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कोरोना विजेता में आज रश्मि प्रभा जी की कलम से निकली काजल कुमार की कहानी. परिवार सहित कोरोना पॉजिटिव होने के बाद सभी लोग पूरी तरह स्वस्थ हुए. 


काजल कुमार का परिचय जानने के लिए यहाँ क्लिक करें. 


रश्मि प्रभा जी के यहाँ क्लिक करके मुलाकात की जा सकती है.

कोरोना के जहर के बीच चाहिए प्यार का एहसास

किस्सा शुरू होता है जब पिछले माह हमारा परिवार कोविड की गिरफ्त में आ गया। गले में खराश आते ही हमने सबसे पहले अपनी मेड को फोन से सूचित कर उसे रोक दिया। जब तक 72 घंटे बाद हमारे टेस्ट की रिपोर्ट आती उसके जरिए हमारी कॉलोनी में खराश वाली रिपोर्ट फैल चुकी थी। कॉलोनी क्या साँय-साँय करती खाली लोटा हो गई, जैसे कि आवाज़ सुनकर कोरोना घर ही आ धमकेगा। ऐसा सन्नाटा पसर गया था।


बहरहाल 21+5 दिनों की नज़रबंदी के बाद अब हम हमारे कैंपस की छोटी सी बगिया में बैठकर चाय, अखबार और गप्पों का सम्मेलन कर लिया करते हैं।


हमारे सामने किराए पर एक परिवार रहता है। उनके गेट के बाहर बैठने के लिए चबूतरा बना है। सुबह उस पर बैठकर पूरा परिवार धूप सेंकता है। जिसमें पुरुष तो मास्क लगाए रहता है किंतु स्त्री बिना मास्क के बैठी रहती है। जबकि सुबह-सुबह सड़क पर लोगों की आवा-जाही रहती है। तमाम वेंडर भी घूमते हैं।


हमने इधर नोटिस किया कि जैसे ही हमारे घर का दरवाजा खुलता है सामने रहने वाली स्त्री तुरंत सतर्क हो अपना दुपट्टा मुँह पर रख लेती है। जैसे ही हम अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लेते हैं मुँह से दुपट्टा फिर सरक जाता है।


मामला तब समझ में आया जब मेरी बहन ने याद दिलाया कि पिछले वर्ष जब हमारे पड़ोसी कोविड पॉजिटिव हुए थे जबकि उनको लक्षण भी नहीं था तब इन्हीं मोहतरमा ने मेरी बहन से कहा कि देखो इन लोगों को कोरोना हुआ है और अपने घर की खिड़की खोल रखी है। बहन ने कहा अरे तो इतनी दूर से हमारे पास थोड़ी न कोरोना आ जाएगा। और उनको भी ताज़ी हवा तो चाहिए न।


अब क्या हम खाली शैतानों को मिल गया फुग्गा। बस दरवाजा खट करने भर में उसका दुपट्टा नाक पर आ जाता है। खैर यह तो एक हास्य वाकया था। अब अगला किस्सा।


रवि सब्जी बेचता है। लगभग 16-17 साल से हम उसी से सब्जी लेते हैं। उसे अक्सर फोन पर मनपसंद सब्जियाँ लाने को भी कह देते हैं। जब हम संक्रमित हुए तो उसे फोन पर बताया। उसने कहा आपको जिस चीज़ की जरूरत हो हमें बता दीजिएगा मैं दे जाया करूँगा। वह हमारी सब्जियाँ, फल आदि थैले में डालकर गेट पर रख जाता था। एक दिन उससे एक मोहतरमा ने कहा तुम यहाँ खड़े हो, पता है यहाँ लोगों को कोरोना हुआ है। पलट कर उसने कहा कि पूरी कॉलोनी में बहुत से लोगों को हुआ है, हम यह देखने लगे तो भूखे मर जाएँगे।


शैली खाना बनाती है। वह ग्रेजुएट है। उसका पति शराब पीकर उसे मारता था। फिर कहीं भाग गया। उसके ससुर डॉक्टर थे पर अब ससुराल पक्ष का कोई जीवित नहीं है। वह खाना बनाकर, रेडीमेड कपड़े बेचकर अपना गुज़ारा कर लेती है। वह हमारे यहाँ जनवरी से खाना बना रही थी। फिलहाल उसे छुट्टी दे रखी है। उसने भी कई बार फोन करके कहा कि दीदी आप सभी लोग बीमार हैं, कैसे खाना बनाते होंगे? हम अपने घर से खाना बना कर आपके यहाँ पहुँचा देंगे। काम चल जा रहा था तो हमने उसे रोक दिया। हाँ, एक वृद्ध दंपति के यहाँ वह खाना बनाकर रख जाती थी। अभी उसने बताया कि वह अपने मायके चली गई है और सुरक्षित है।


यह किस्सा लिखने का मकसद ऐसे किसी का मज़ाक बनाने का नहीं है। यह महामारी है ही इतनी खतरनाक जो कि अपनों से भी दूरी करवा दे रही है। बस एक दिन अपनी पोस्ट पर लिखा था कि 'जबसे कोविड हुआ चूहे गायब हैं' हालांकि उसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है फिर भी हमने नोटिस किया कि इतने सालों से हम जिन चूहों से परेशान थे वे अचानक हमारे घर से गायब कैसे हो गए। उस पोस्ट पर हमारे मित्र Shashi Priya जी ने परिहास किया कि मैं ज़हरीली हो गई हूँ तो हमने उनसे कहा कि इस पर भी एक किस्सा है, कभी लिखूँगी। तो बस यह हमारे ज़हरीले होने का किस्सा था। अब देखना है कि हम कितने माह तक जहरीले रहते हैं।


बहुत पहले एड्स का एक विज्ञापन आता था जिसमें शबाना आज़मी एक बच्चे को गले लगाकर कहती थीं कि इससे एड्स नहीं प्यार फैलता है। इसके लिए भी कुछ आना चाहिए न।


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ये कहानी है अर्चना तिवारी की जो कोविड संक्रमण से मुक्त हुईं. इस समयावधि में उनके आसपास कई किस्से गुजरे. उन किस्सों के द्वारा वे समाज की मानसिकता, सहयोग आदि का चित्रण करती हैं. इस चित्रण को रश्मि प्रभा जी द्वारा सामने लाया गया है. 


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Tuesday, 25 May 2021

चौदह दिन व्यथा-वेदना के भी, स्नेह के भी

22 मार्च 2020 से शुरु हुए लॉक-डाउन से 22 अक्टूबर तक का समय मैंने घर में ही बिताया. यों बीच-बीच में प्राचार्य बुला लेते थे लेकिन करोना संक्रमण से बचे रहने की एक उपलब्धि थी मेरे पास. उस उपलब्धि पर पानी फिर गया जब मुझे अपने दस बी एल ओ को मतदान सामग्री देने कार्यालय जाना ही पड़ा. सात महीने मैंने फोन पर बात करके ही काम चला लिया था पर 22 अक्टूबर को चुनाव अधिकारी ने बोल दिया कि सुपरवाइजर ही आकर सामान लें. यह उन्हीं का दायित्त्व है. कार्यालय में श्रीमती सक्सेना के अलावा सभी थे. मैंने उन्हें भी फोन करके बुलाया. सामान वितरित किया. घर आते-आते सात बज गए.


रात में खांसी ने दरवाजा खटखटाया. यह शायद दो दिन पहले फ्रिज़ से निकला दही खाने का परिणाम था. ठण्डी व खट्टी चीजें मुझे तुरन्त खाँसी करती हैं, यह मैं जानती हूँ. यह प्रज्ञापराध था सजा तो मिलनी ही थी. खूब गरम-गरम पानी पिया पर सुबह तक खाँसी अन्दर तक चली आई.


खाँसी का एक ठसका भी दिमाग में घंटी सी बजा देता है. मयंक ने कुछ चिन्ता के साथ कहा.वर्क फ्रॉम होम’ की सुविधा के कारण वह अगस्त में ग्वालियर आ गया था. श्वेता पिछले साल सिडनी चली गयी थी. मयंक उसकी व्यवस्थाएं जमाकर लौट आया था और 22 मार्च को सिडनी जाने वाला था लेकिन उसी दिन देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हो गई और वह नहीं जा पाया. अब काफी रकम अदाकर एक टिकिट मिला था 2 नवम्बर का. जाने से पहले वह मेरे स्वास्थ्य के प्रति आश्वस्त हो लेना चाहता था. मैंने उसे आश्वस्त किया, “मुझे हमेशा इसी तरह की खांसी होती है. डा. गोविला( होम्यो) की दो खुराकों से ठीक हो जाती है. तू चिन्ता न कर.”


मैंने उसी समय डा. गोविला को फोन लगाया पता चला कि वे आठ दिन के लिये बाहर गई हैं. ओह, मुझे तो जल्दी ठीक होना था, मयंक के लिये. मैंने गांधी नगर में स्थिति एक डाक्टर से तीन दिन की दवा ले आई. दो-तीन दिन तक लगता रहा कि ठीक हो रही हूँ फिर लगा कि कोई लाभ नहीं.


खांसी बड़ी हठी है. डा. गोविला नहीं, तो कोई नहीं!” मुझे चिन्ता हुई. कमजोरी बढ़ रही थी. अष्टमी के दिन कन्या भोग बनाते हुए मुझे लगा कि मैं खड़ी भी नहीं हो पा रही. अन्दर आरी सी चलती महसूस हो रही थी. मयंक को यह नहीं बता सकती थी पर कब तक नहीं बताती. स्थिति बेकाबू होती लग रही थी. मैं जैसे परास्त हो रही थी.


बेटा, मुझे डाक्टर लाहा के पास चलो.”


माते, यह पहले ही सोच लेतीं.” मयंक थोड़ा नाराज हुआ क्योंकि उसका शुरु से यही विचार था. यह 28 अक्टूबर की बात है.


डाक्टर लाहा मेरे विचार से ग्वालियर के सबसे योग्य, अनुभवी और रोग की जड़ तक पहुँचने वाले डाक्टर हैं. सन् 2003 उन्होंने मुझे लगभग मौत के मुँह से बाहर निकाला था तबसे उनसे सम्पर्क बना हुआ है. उन्होंने हालचाल पूछा और दवा लिख दी साथ ही कोविड टेस्ट व एक्सरे कराने को भी कहा.


सर कोविड टेस्ट क्यों?”


ऐसे ही.. जरूरी नहीं कि इन्फेक्शन हो ही पर कराना ठीक रहेगा.”


सीटी स्कैन के बाद कोविट टेस्ट घर पर ही कराने के लिये लाल पैथोलॉजी वाले को बुलाया. टेस्ट करने वाले युवक ने सिर से पाँव तक अजीब सी ड्रैस पहनी फिर दवा में डूबी एक सलाई मेरी नाक में अन्दर तक डाल दी. उसकी चुभन से मेरी आँखों में आँसू निकल पड़े. मुझे उम्मीद थी कि टेस्ट निगेटिव आएगा. आना ही चाहिये ताकि मयंक सिड़नी जा सके. मेरी हालत केवल खाँसी के कारण थी और ऐसी खांसी तो मुझे लगभग हर साल हो जाती है. 29 अक्टूबर की शाम को रिपोर्ट आई पॉजिटिव. मेरी आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया. शरीर के कष्ट से ज्यादा पीड़ा इस बात की थी कि अब मयंक सिडनी नहीं जाएगा, जहाँ उसका पाँच साल का बेटा इन्तज़ार कर रहा है, श्वेता पलकें बिछाए बैठी है. इसकी जिम्मेदार मैं हूँ. न ठण्डा दही खाती न... मेरी आँखें भर आईं. खुद पर क्रोध आया. मैंने श्वेता को लिखा, सॉरी बेटा.


उसने कहा, कोई बात नहीं माँ. आपकी तबीयत से बढ़कर कुछ नहीं है.”


तभी मुझे पता चला कि बीएल ओ अनीता मैडम और सक्सेना मैडम भी कोविड की चपेट में आ गई हैं और 22 अक्टूबर से ही. सक्सेना का संक्रमण स्तर इतने उच्च स्तर पर था कि उनके सम्पर्क में आने वाला संक्रमित होना ही होना था. खैर संक्रमण जैसे भी हुआ तो सिर पर मुसीबत तो आ ही चुकी थी. मयंक और वीडियो कॉल पर प्रशान्त सुलक्षणा विवेक निहाशा दिलासा देते रहे पर मेरा मन बेहद अशान्त था. इस बीमारी का सबसे बुरा पहलू है मानसिक. रोगी अलग थलग और अछूत सा हो जाता है. अपने भी पराए हो जाते हैं. लोग घर को अजीब सी नजरों से घूरते हैं.


मयंक उसी शाम अपने डाक्टर मित्र के निर्देश पर मेरे लिये सात दिन की दवाएं ले आया. सावधानी और बचाव को सोचते हुए अपने लिये भी. साथ ही खुद भी कोविड टेस्ट करा आया. अब मैं कमरे में अकेली थी. ढेर सारी दवाइयों और भाप लेने वाले यंत्र के साथ. सुबह से शाम तक ढेरों गोली कैप्सूल लेना. दो-तीन बार स्टीम और ऑक्सीजन चैक करते रहना, यही दिनचर्या थी.


31 अक्टूबर को एक और बम गिरा. मयंक की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई. मुझे अब मयंक की चिन्ता थी पर वह शान्त था. सहजता से बोला, “ माँ अब हम दोनों एक जैसे हैं. अलग और दूर रहने की जरूरत नहीं है. और देखो, आप संक्रमित नहीं भी होतीं तब भी मेरा सिडनी जाना संभव नही था. उसके लिये मेरी रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिये थी. इसलिये खुद को कोई दोष ना दो. अभी हमें और साथ रहना है न.” यह सुनकर मन थोड़ा शान्त हुआ पर काम करने की स्थिति में हम दोनों ही नही थे. किसी तरह उठकर चाय मैं बनाती और काढ़ा मयंक बना लेता. पड़ोस में भाभी, सुलक्षणा की बड़ी बहिन ऋतु और मयंक की ससुराल वालों ने हमें खाना नहीं बनाने दिया. मुझे संकोच हो रहा था खाना मँगाने में इसलिये एक दिन हमने मिलकर खाना बनाने की कोशिश की पर हमें दोनों को तीव्रता से अनुभव हो गया कि कोरा स्वाभिमान ताक पर रख मदद लेनी ही पड़ेगी. मेरे शरीर में जरा भी दम नहीं थी. मयंक भी बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था. 


इस बीच मैंने कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, मधुशाला, नतोहं आदि कुछ पुस्तकें पढ़ीं. गाओ गुनगुनाओ ग्रुप की सभी सखियाँ और दूसरे तमाम हितैषी फोन पर हालचाल लेते रहे. वन्दना ‘जिज्जी’ ने जब कहा कि “हमेशा पॉजिटिव रहने वाले लोगों को तो ‘पॉजिटिव’ होना ही था.” तो मुझे हंसी आ गई. सचमुच मैं हमेशा ही पॉजिटिव सोचती हूँ पर अब मैं ‘निगेटिव’ होने की दुआएं माँग रही थी. ग्यारह दिन बाद हम दोनों ने फिर कोविड टेस्ट कराया. रिजल्ट आने तक दिल धड़कता रहा कि पता नहीं ‘निगेटिव’ आएगा भी या नहीं.


मेरी रिपोर्ट दूसरे दिन ‘निगेटिव’ आगई थी पर खुशी अधूरी थी. मयंक की रिपोर्ट नहीं आई थी. एक दिन मेरा इन्तज़ार में बीता. जब उसकी टेस्ट रिपोर्ट भी ‘निगेटिव’ आई तो मुझे लगा कि हमने दुनिया जीत ली है. मैं बच्चों की तरह उछल पड़ी. मयंक को गले लगा लिया. हम सचमुच एक अँधेरी सुरंग से बाहर आ गए थे. कमजोरी तो बहुत दिनों तक रही पर वे चौदह दिन जिन्दगी के अभूतपूर्व दिन थे. व्यथा-वेदना के भी और स्नेह के भी.

 

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कोरोना विजेता के रूप में गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की कहानी को बताया है रश्मि प्रभा जी ने. चौदह दिन की विश्वास भरी, स्नेहिल यात्रा के बाद वे और उनका पुत्र कोरोना संक्रमण से मुक्त हो सके. 


मिलिए गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी से. 


रश्मि प्रभा जी से मिलने के लिए यहाँ क्लिक करें.

Monday, 24 May 2021

बी पॉजिटिव तो कोरोना नेगेटिव

साल का आखिरी दिन था, 31 दिसम्बर 2020। राहत महसूस कर रहा था कि बिना संक्रमित हुए ये साल बीत रहा है। बात राहत की ही थी कि मार्च से लेकर दिसम्बर तक हर उस इलाके में गया, जहाँ कोरोना के मरीज मिलते। कोरोना मरीज मिला और इलाका कंटेनमेंट जोन। सब दूर भागते उन इलाकों से पर उन्हीं इलाकों में जाना पड़ता, काम ही ऐसा है।


सबसे संक्रमित राज्य महाराष्ट्र के बार्डर पर बसे होने के कारण वहाँ भी कई-कई बार जाना हुआ। पैदल, ट्रकों में लदकर, ट्रेन की पटरियों के साथ-साथ चलते लोग... सबकी पीडा़ देखी, राहत पहुंचाने की कोशिश की। इस दौरान सुरक्षा के सारे उपाय किया, लगा इसलिए बचा रहा।


शाम होते-होते कमजोरी आने लगी। मुंह का स्वाद चला गया। कुछ खाने का मन नहीं होता। खाता तो उल्टी हो जाती। कंपकंपी। शरीर पूरी तरह गर्म लेकिन ठंड भरपूर। कमरे में हीटर चलाया, दो कंबल ओढे़ पर राहत ही नहीं।


नए साल के पहले दिन डाक्टर के पास गया। सबसे पहले आक्सीजन सेचुरेशन देखा, 98-99। कहा, कोविड तो नहीं है। मलेरिया और टाइफाइड का टेस्ट हुआ, इस बीच कुछ दवाएँ दीं। दवा से कुछ राहत मिलती लेकिन रात को फिर तकलीफ। दूसरे दिन रिपोर्ट आई। मलेरिया नेगेटिव। टाइफाइड नेगेटिव। फिर दूसरी दवाएँ दी गईं। तकलीफ कुछ कम होती, खत्म नहीं होती। हर बार आक्सीजन सेचुरेशन 98-99


आक्सीजन लेबल ने न डाक्टर के और न मेरे जेहन में बात लाई कि कोविड टेस्ट भी कराना चाहिए लेकिन सेहत में सुधार न होता देख डाक्टर ने सीआरपी (सी रिएक्टिव प्रोटीन) टेस्ट कराया। रिपोर्ट आई 56। सामान्यत: यह 8 होना चाहिए। इसे कम करने की दवा दी गई। तकलीफ ज्यों कि त्यों। दूसरे दिन फिर सीआरपी कराया, रिपोर्ट 120! अब डाक्टर ने हाथ खडे़ कर दिए। कहा, हायर सेंटर ले जाइए। एडमिट करना पडे़गा। वेंटिलेटर की भी जरुरत पड़ सकती है।


घर में पत्नी और बेटी बस। मुझे लगा, यदि मैं अस्पताल गया तो ये कैसे संभलेंगे? बस हिम्मत किया और पत्नी रुचि को कहा, मेरी रिपोर्ट लेकर डा प्रकाश खूंटे सर से मिलो।


खूंटे सर इस समय इस क्षेत्र में कोविड और नान-कोविड मरीजों के इलाज के मामले में ईश्वर तुल्य हैं। रिपोर्ट देखते ही उन्होंने दवाएं बदलीं और सिटी-स्कैन के लिए कहा। ये टेस्ट कराया। स्कोर आया 13। इस सब के बीच 7 जनवरी हो गई। अब उन्होंने कोविड टेस्ट के लिए कहा।


दूसरे दिन 8 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग की टीम घर आई। एंटीजन टेस्ट हुआ, तुरंत रिपोर्ट मिल गई नेगेटिव। आरटी-पीसीआर का सैंपल लिया गया, दूसरे दिन रिपोर्ट आई नेगेटिव। सीआरपी फिर से कराया, रिपोर्ट 112। यानि कुछ कम हुआ। एक बार फिर आरटी-पीसीआर कराया, इसकी भी रिपोर्ट नेगेटिव।


अब खूंटे सर ने कहा, आपको कोविड हुआ है, इसी का प्रोटोकाल फालो करना होगा। अस्पताल जाएंगे? हिम्मत रख मैंने कहा- मुझे कुछ नहीं होगा, घर में ही रहूंगा, आप दवाएँ दीजिए। 7 दिन उनकी दवाएँ लीं। सारे प्रोटोकाल फालो किया। भाप। काढा़। हल्दी दूध। सेंधा नमक के साथ नींबू पानी। गर्म पानी। फिर सीआरपी कराया, रिपोर्ट 13, यानि सामान्य के करीब। कमजोरी बनी हुई थी। फिर अगले 7 दिन और कोविड की दवाएँ लीं।


13 जनवरी। मेरा जन्मदिन। पहली बार यह दिन बिस्तर पर बीता। पर मन में विश्वास था कि 13 जनवरी 2022 को पार्टी कर लेंगे, अभी आराम जरुरी है। भरोसे की जीत हुई और 22-23 जनवरी को सब सामान्य हो गया।


हमने एक संस्था बनाई है P-4। यानी चार P। पहला P पब्लिक, दूसरा P प्रशासन, तीसरा P पोलिस और चौथा P प्रेस। इन चारों वर्ग के बीच आपसी समन्वय के लिए इस संस्था के बैनर तले हर साल सद्भावना क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। सांसद, विधायक, कलेक्टर, एसपी सब इस P-4 का हिस्सा हैं। इस साल 26 जनवरी से टूर्नामेंट होना तय था। भरोसा था कि ठीक होकर मैदान में जरुर पहुंचूंगा। एक दिन पहले मैदान में पहुंचा। अपनी टीम (प्रेस) की ओर से तो नहीं खेला लेकिन तीन दिन बाद हुए कोरोना वारियर्स के बीच प्रदर्शन मैच में डाक्टरों के साथ मैच खेला। पसीना बहाया।


सब ठीक हुआ। यह हौसले की जीत थी।


2020 के मार्च से लेकर 2021 के इस जारी मई तक मैंने देखा, समझा है कि कोरोना हार सकता है बशर्ते हम अपनी इच्छाशक्ति मजबूत रखें। कोरोना से बचने के लिए मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग जरुरी है। नहीं हुआ तब तक कोरोना से डरना जरुरी है लेकिन यदि यह हो गया तो फिर डरने की जरुरत नहीं, इससे लड़ने की जरूरत है, इस जज्बे के साथ कि मेरी जीत होगी, कोरोना हारेगा। तय मानिए, आपने तय कर लिया तो कोरोना हारेगा ही।


अभी 10 मई को कोविशिल्ड वैक्सीन की पहली डोज ली है। इंजेक्ट वाली जगह में हल्का दर्द हुआ बस।


कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सेनिटाइजर का प्रयोग जरुरी है और अब इसे हराने के लिए वैक्सीन ही सबसे कारगर है।


वैक्सीन जरुर लगाएँ और दूसरों को भी प्रेरित करें।


हाँ, यदि अपना कोई पाजिटिव हो गया हो तो उसे नकारात्मक विचारों से दूर रखें, पाजिटिविटी का माहौल दें। यदि अस्पताल में भर्ती हैं और मोबाइल देना जरुरी है तो स्मार्टफोन बिल्कुल न दें। सामान्य फोन दें। सोशल मीडिया से दूर रखें।


कोरोना जैसी नकारात्मक बीमारी को सकारात्मकता से ही पराजित किया जा सकता है।


बी पाजिटिव तो कोरोना नेगेटिव


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कोरोना विजेता के रूप में अतुल श्रीवास्तव जी की कहानी रश्मि प्रभा जी की वाल से साभार. मन में विश्वास हो, हौसला हो तो कोई भी जंग आसानी से जीती जा सकती है.

अतुल श्रीवास्तव से मिलने के लिए यहाँ क्लिक करें. 

रश्मि प्रभा जी का परिचय यहाँ से प्राप्त करें.

आत्मविश्वास से हराया कोरोना को

आवाज़ करती एम्बुलेंस अभी तक रास्ते पर ही देखी थी! तब भी बहुत घबराहट होती थी उसकी आवाज़ से! आज ख़ुद बैठे थे उसके स्ट्रेचर के बगल वाली सीट पर हम दोनों! जगह नहीं हो रही थी तो ड्राइवर ने मुझसे कहा कि स्ट्रेचर पर बैठ जाइये पर मैं नहीं बैठी!


बीच-बीच में ऑक्सीजन के लिए भी पूछते रहे वो लोग.


लगभग आधे घंटे में हम हॉस्पिटल पहुँच गए! अंशुल अलग से अपनी गाड़ी से आ गया था!


सारी फॉर्मेलिटी पूरी हुई और हमे एडमिट कर लिया गया! तुरंत ही दोनो का सी टी स्कैन हुआ. शर्मा जी का स्कोर 10 और मेरा ज़ीरो था लेकिन साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी!


एडमिट करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नर्स हमें ऊपर रूम में ले जाने से पहले बोली "जाने से पहले आप लोग अपने बेटे से मिल लीजिये." उस वक़्त बेटा फीस जमा करने गया हुआ था. हमने कहा चलते हैं बाद में मिल लेंगे तो वह बोली "नहीं! आप लोग इंतज़ार कर लीजिये और मिलकर ही चलिए." उसके इस कथन ने एक ही पल में कोरोना की भयावह हक़ीक़त सामने ला दी थी!


हम दोनों को एक ही रूम में बेड दे दिए गए. हॉस्पिटल में इलाज़ चालू हो गया. पहले दिन दो डोज़ दिए गए रेमिडेसिविर के और अगले पाँच दिन एक-एक देने थे. इसके अलावा भी सारी दवाइयाँ, सलाईन चल रही थी!


हॉस्पिटल से ही नाश्ते खाने चाय के अलावा सुबह काढ़ा और रात में हल्दी वाला दूध भी दिया जा रहा था.


दिन में तीन से चार बार भाप लेना और गार्गल करना भी जारी थायानी सारी पैथी को साथ लेकर चल रहे थे डॉक्टर... लक्ष्य केवल मरीज का स्वस्थ होकर घर जाना था.


हम दोनों की हालत में बहुत अच्छा सुधार हो रहा था. 5 मार्च को डॉक्टर कह गए थे कि आज शाम के सी टी स्कैन के बाद सब सामान्य होने पर दूसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया जायेगा!


शाम को सी टी स्कैन हुआ और 6 अप्रेल की सुबह डॉक्टर ने राउंड के समय हम दोनों को डिस्चार्ज नोट दे दिया. बहुत ख़ुशी-ख़ुशी सभी दवाईयां और ज़रूरी कागज़ात बैग में रखकर तैयार बैठे थे हम घर जाने के लिए. हमारे पास जो भी सामान था हमने वहीं छोड़ दिया था ताकि ज़रूरतमंदों के काम आ सके जिसमें स्टीम लेने और गर्म पानी करने की इलेक्ट्रिक वाली केतली आदि थे.


सारी फॉर्मेलिटी और बिलिंग की प्रक्रिया होते-होते दोपहर के लगभग चार बज चुके थे. हमारा दोपहर का भोजन भी वहीं हो गया था!


तभी अचानक मुझे बेचैनी सी महसूस हुई और हृदय गति बहुत तेज़ हो गई! इस बैचेनी में भी दिमाग ने समय पर काम किया. मैंने तुरंत ऑक्सीमीटर में पल्स रेट देखा तो काफी बढ़ा हुआ दिखा! शर्मा जी तुरंत डॉक्टर को बुला लाये और उसी समय मैं अपने डॉक्टर सारडा सर को फोन लगाकर बता ही रही थी कि हॉस्पिटल के डॉक्टर रुम में आ गए. उन्होंने तुरंत ई सी जी किया और कुछ दवाएं दी और मुझे आई सी यू में शिफ़्ट कर दिया!


बता दिया गया कि दो दिन मुझे आई सी यू में रहना था लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली थी कि हाथ से आई वी सैट निकाल दिया गया था उसे पुनः नहीं लगाया गया था! पूरे हाथ की नसें ड्रिप लगने से बहुत तकलीफ में थी!


लोगों की असली तकलीफें मुझे यहाँ आई सी यू में आकर देखने मिली! जीवन में पहली बार इस जगह को देखा था! पूरे शरीर में मशीनें, नाक में ऑक्सीजन पाईप और सिर के पास गूँजती मॉनिटर की तेज़ आवाज़!


रात हो चली थी अगल-बगल आमने सामने हर तरफ कोरोना के मरीज़ थे! बगल वाले का ऑक्सीजन लेबल बहुत कम था और वे ऑक्सीजन मास्क हटाकर इधर उधर कर दे रहे थे! ड्यूटी पर उपस्थित सिस्टर उन्हें हर बार समझाती और बार-बार लगाकर दे रही थी. सारे स्टाफ और विशेषकर छोटी-छोटी उम्र की उन नर्सों का सेवाभाव मुझे हमेशा याद आता है! हर वक़्त मुस्कुराते हुए अपने काम को सेवा के भाव और बड़ी लगन से करती, पी पी ई किट के अंदर बंद सभी एक जैसी लगती! कितनी तकलीफ़ होती होगी इतनी गर्मी में इस पी पी ई किट को पहनकर काम करते हुए यह सोचकर मन श्रद्धा से भर जाता था उनके लिए!


रात बड़ी लम्बी हो गई थी लेटा भी नहीं जा रहा था मुझे! ज़रा सी कोशिश भी करती तो पल्स रेट बहुत नीचे गिरने लगता था! लग रहा था कि किसी से सारी रात बात करके इस रात को काट लूँ लेकिन बात भी नहीं की जा सकती थी! एक बार सिस्टर से रिक्वेस्ट की कि मॉनिटर की आवाज़ कम कर दीजिये लेकिन उसने कहा ये ज़रूरी है आपके लिए! डॉक्टर मुझे बार बार सोने के लिए कह रहे थे पर मुझे नींद कहाँ से आती! थोड़ी-थोड़ी देर में नए मरीज़ आ रहे थे! आख़िर में डॉक्टर ने कहा "अच्छा ठीक है आप बैठकर आँखें बंद करो और अपनी एक-एक सांस को महसूस करो." मैंने ऐसा करने की कोशिश की तो कुछ शांति हुई! ऐसा ही करते-करते सुबह हो गई!


दूसरे दिन आख़िर सुबह से ड्रिप लगा ही दी गई जो लगभग सात घंटे चली! दवा, ड्रिप और ऑक्सीजन के साथ ये दोनों दिन सकुशल बीत गए और 8 मार्च की सुबह के राउंड के बाद हमें डिस्चार्ज मिल गया. शाम को चार बजे तक हम घर आ गए!


इधर घर को सेनेटाइज़ करवा लिया गया था. छोटी बहन सीमा ने सबकुछ तैयारी करके रखी थी ताकि हम नहाधोकर आराम कर सकें!


खाने पीने और सारी देखभाल का पूरा जिम्मा दोनों बहनों सरोज और सीमा ने ले लिया था, उन दोनों ने किसी भी बात की ज़रा सी भी कमी नहीं होने दी. हर बात का ध्यान रख रही थी ताकि हम जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाएँ! उधर दीपाश्री भी ख़ूब ध्यान रख रही थी! हमारी सुबह, दोपहर और रात की हर रीडिंग पर नज़र थी उसकी! डॉक्टर सारडा सर भी बराबर ध्यान दे रहे थे. घर आने के बाद भी हम दोनों का शुगर लेबल बहुत बढ़ा था, उन्होने इन्सुलिन और दवा देकर सामान्य लाने के सभी प्रयत्न किये!


घर आये अभी दो दिन भी नहीं हुए थे कि अंशुल की एक आँख में दर्द और लाली आ गई! दूसरे दिन हल्का बुख़ार भी आ गया! 11 मार्च को उसकी रिपोर्ट भी पॉज़िटिव आ गई! अपनी तकलीफों और दर्द से उबर भी नहीं पाए थे कि बेटे का पॉज़िटिव होना बहुत दुःखी कर गया!


अंशुल के लिए भी सारडा सर का इलाज़ शुरू हुआ! लगभग चार या पाँच दिन बाद उन्होंने कहा 'यदि कल तक बुख़ार ठीक नहीं हुआ तो अंशुल को भी एडमिट करना होगा.' लेकिन ईश्वर की कृपा से उसके बाद उसे बुख़ार नहीं आया और सारडा सर के ईलाज़ से अंशुल घर पर रहकर ही दवाओं से स्वस्थ हो गया.


इस कोरोनाकाल में कोरोना प्रभावित होने पर भी मन में यही विश्वास था कि हमें स्वस्थ होना है और इसी विश्वास ने हमें कोरोना से जीत भी दिलाई!


कमज़ोरी बहुत थी! ऐसी कि ब्रश करने, खाना खाने तक से थकान होती थी लेकिन पौष्टिक प्रोटीन युक्त सादा कम तेल और मसाले का समय पर भोजन, फ़ल (सेव, संतरे, मौसम्बी, कीवी, नारियल पानी) आदि समय पर लिए तो कमज़ोरी भी काफी कम हो गई है! खुश्बू भी आने लगी कुछ समय बाद. मुनक्के को हल्का सा भूनकर उसमें सेंधा नमक डालकर चूसने से मुंह का स्वाद भी वापस आ गया है!


"हम तीनों ने आइसोलेशन का पूर्णतः पालन किया ताकि हमारे कारण किसी भी व्यक्ति में कोरोना वायरस का संक्रमण न फैले."


कोरोना से स्वस्थ होने के पश्चात् भी ध्यान रखने योग्य कुछ ज़रूरी बातें -

पोस्ट कोविड हेतु डॉक्टर से परामर्श लें और उनकी देखरेख में इलाज़ करवायें, क्योंकि दवाओं के विपरीत प्रभाव के कारण कई परेशानियाँ हो सकती हैं.

पौष्टिक प्रोटीनयुक्त भोजन करें.

आराम करें.

हल्का व्यायाम सामर्थ्य अनुसार करें.

मुंह की सफाई (oral hygiene) का ख़याल रखें! दिन में कम से कम दो बार गुनगुने नमक के पानी से और एक बार बेटाडीन से गरारे करें.

दिन में दो से तीन बार भाप लें

कुछ देर धूप में अवश्य बैठें.

कोरोना संक्रमण काल में लोग घबराहट के कारण मनोस्थिति से नियंत्रण खो रहे हैं. ऐसे समय में धैर्य के साथ महामारी का मुकाबला करना बहुत जरूरी है.


कोरोना की आधी जंग तो मन से जीती जा सकती है. डाक्टर सभी मरीजों को बेहतर उपचार देने का प्रयास करते हैं, लेकिन जो लोग मन से भय निकालकर धैर्य और सकारात्मक भाव से रहते हैं, वे कोरोना से लड़ाई में जीतकर पूरे समाज के लिए उदाहरण बनते हैं.


वायरल का सीजन है इसलिए बुखार आते ही कोरोना का भाव मन में लाना उचित नहीं. विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लें व जांच कराएं.


मन में सावधानी तो रहे लेकिन नकारात्मक भय न आने दें.


कोरोना संबंधित समाचारों को कम से कम देखें.


सोशल मीडिया पर आने वाले सभी तथ्य प्रमाणित नहीं होते. स्वविवेक से भी काम लें. मन में आने वाले विचारों की तार्किकता पर ध्यान दें.


व्यस्त दैनिक दिनचर्या रखें. टीवी पर न्यूज की जगह रियलिटी सीरियल, गेम्स देखें. मनपसंद संगीत सुनें.


जो कोरोना मरीज स्वस्थ होकर अपना दैनिक जीवनयापन कर रहे हैं, उनसे सीख लेकर स्वयं को सकारात्मक भाव में रखें.


कहानियां, कविताएं, उपन्यास आदि पढ़कर अपना ज्ञानवर्धन करें.


टीकाकरण करवाकर स्वयं को सुरक्षित करें व दूसरों को इसके लिए प्रेरित करें.


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कोरोना विजेता के रूप में आपके सामने है संध्या शर्मा जी की कहानी. इसे रश्मि प्रभा जी की वाल से साभार लिया गया है. 

संध्या शर्मा जी का परिचय यहाँ क्लिक करके 


रश्मि प्रभा जी से मिलने के लिए क्लिक करें.

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