Friday, 28 May 2021

कोरोना के जहर के बीच चाहिए प्यार का एहसास

किस्सा शुरू होता है जब पिछले माह हमारा परिवार कोविड की गिरफ्त में आ गया। गले में खराश आते ही हमने सबसे पहले अपनी मेड को फोन से सूचित कर उसे रोक दिया। जब तक 72 घंटे बाद हमारे टेस्ट की रिपोर्ट आती उसके जरिए हमारी कॉलोनी में खराश वाली रिपोर्ट फैल चुकी थी। कॉलोनी क्या साँय-साँय करती खाली लोटा हो गई, जैसे कि आवाज़ सुनकर कोरोना घर ही आ धमकेगा। ऐसा सन्नाटा पसर गया था।


बहरहाल 21+5 दिनों की नज़रबंदी के बाद अब हम हमारे कैंपस की छोटी सी बगिया में बैठकर चाय, अखबार और गप्पों का सम्मेलन कर लिया करते हैं।


हमारे सामने किराए पर एक परिवार रहता है। उनके गेट के बाहर बैठने के लिए चबूतरा बना है। सुबह उस पर बैठकर पूरा परिवार धूप सेंकता है। जिसमें पुरुष तो मास्क लगाए रहता है किंतु स्त्री बिना मास्क के बैठी रहती है। जबकि सुबह-सुबह सड़क पर लोगों की आवा-जाही रहती है। तमाम वेंडर भी घूमते हैं।


हमने इधर नोटिस किया कि जैसे ही हमारे घर का दरवाजा खुलता है सामने रहने वाली स्त्री तुरंत सतर्क हो अपना दुपट्टा मुँह पर रख लेती है। जैसे ही हम अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लेते हैं मुँह से दुपट्टा फिर सरक जाता है।


मामला तब समझ में आया जब मेरी बहन ने याद दिलाया कि पिछले वर्ष जब हमारे पड़ोसी कोविड पॉजिटिव हुए थे जबकि उनको लक्षण भी नहीं था तब इन्हीं मोहतरमा ने मेरी बहन से कहा कि देखो इन लोगों को कोरोना हुआ है और अपने घर की खिड़की खोल रखी है। बहन ने कहा अरे तो इतनी दूर से हमारे पास थोड़ी न कोरोना आ जाएगा। और उनको भी ताज़ी हवा तो चाहिए न।


अब क्या हम खाली शैतानों को मिल गया फुग्गा। बस दरवाजा खट करने भर में उसका दुपट्टा नाक पर आ जाता है। खैर यह तो एक हास्य वाकया था। अब अगला किस्सा।


रवि सब्जी बेचता है। लगभग 16-17 साल से हम उसी से सब्जी लेते हैं। उसे अक्सर फोन पर मनपसंद सब्जियाँ लाने को भी कह देते हैं। जब हम संक्रमित हुए तो उसे फोन पर बताया। उसने कहा आपको जिस चीज़ की जरूरत हो हमें बता दीजिएगा मैं दे जाया करूँगा। वह हमारी सब्जियाँ, फल आदि थैले में डालकर गेट पर रख जाता था। एक दिन उससे एक मोहतरमा ने कहा तुम यहाँ खड़े हो, पता है यहाँ लोगों को कोरोना हुआ है। पलट कर उसने कहा कि पूरी कॉलोनी में बहुत से लोगों को हुआ है, हम यह देखने लगे तो भूखे मर जाएँगे।


शैली खाना बनाती है। वह ग्रेजुएट है। उसका पति शराब पीकर उसे मारता था। फिर कहीं भाग गया। उसके ससुर डॉक्टर थे पर अब ससुराल पक्ष का कोई जीवित नहीं है। वह खाना बनाकर, रेडीमेड कपड़े बेचकर अपना गुज़ारा कर लेती है। वह हमारे यहाँ जनवरी से खाना बना रही थी। फिलहाल उसे छुट्टी दे रखी है। उसने भी कई बार फोन करके कहा कि दीदी आप सभी लोग बीमार हैं, कैसे खाना बनाते होंगे? हम अपने घर से खाना बना कर आपके यहाँ पहुँचा देंगे। काम चल जा रहा था तो हमने उसे रोक दिया। हाँ, एक वृद्ध दंपति के यहाँ वह खाना बनाकर रख जाती थी। अभी उसने बताया कि वह अपने मायके चली गई है और सुरक्षित है।


यह किस्सा लिखने का मकसद ऐसे किसी का मज़ाक बनाने का नहीं है। यह महामारी है ही इतनी खतरनाक जो कि अपनों से भी दूरी करवा दे रही है। बस एक दिन अपनी पोस्ट पर लिखा था कि 'जबसे कोविड हुआ चूहे गायब हैं' हालांकि उसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है फिर भी हमने नोटिस किया कि इतने सालों से हम जिन चूहों से परेशान थे वे अचानक हमारे घर से गायब कैसे हो गए। उस पोस्ट पर हमारे मित्र Shashi Priya जी ने परिहास किया कि मैं ज़हरीली हो गई हूँ तो हमने उनसे कहा कि इस पर भी एक किस्सा है, कभी लिखूँगी। तो बस यह हमारे ज़हरीले होने का किस्सा था। अब देखना है कि हम कितने माह तक जहरीले रहते हैं।


बहुत पहले एड्स का एक विज्ञापन आता था जिसमें शबाना आज़मी एक बच्चे को गले लगाकर कहती थीं कि इससे एड्स नहीं प्यार फैलता है। इसके लिए भी कुछ आना चाहिए न।


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ये कहानी है अर्चना तिवारी की जो कोविड संक्रमण से मुक्त हुईं. इस समयावधि में उनके आसपास कई किस्से गुजरे. उन किस्सों के द्वारा वे समाज की मानसिकता, सहयोग आदि का चित्रण करती हैं. इस चित्रण को रश्मि प्रभा जी द्वारा सामने लाया गया है. 


अर्चना तिवारी से मिलने के लिए यहाँ क्लिक करें. 


रश्मि प्रभा जी से आप यहाँ क्लिक करके मुलाक़ात कर सकते हैं. 

1 comment:

  1. कोरोना के समय का चित्रण हमारी यादों में शामिल हो चुका हैं। अर्चना जी ने अपने अनुभव साझा किए और रश्मि जी इन सबको सहेज रही हैं, इसके लिए आप दोनों को बधाई।

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