बात पिछले वर्ष यानि 2020 से शुरू करते हैं जब वायरस की शुरुआत हुई थी परन्तु स्थितियाँ आज की तरह भयावह नहीं थीं. 19 मार्च 2020 से ही रेलवे में स्थिति समझ आने लगी थी. लिहाजा मैंने अपनी टीम को पहले से ही यथासम्भव सहायता के लिए तैयार कर लिया था और उसी हिसाब से कार्य करना शुरू किया. इसके साथ ही सरकार द्वारा इस बारे में जारी किये गए समस्त दिशानिर्देशों को भी सभी को बताना शुरू कर दिया था. सावधानी को देखते हुए स्वयं भी सुरक्षा के सभी उपाय, जैसे मास्क को उचित तरीके से लगाना, सेनेटाइजेशन इत्यादि अपनाने शुरू कर दिए थे.
जब लॉकडाउन
लागू हुआ तो हम लोग सावधानी से कार्य करते रहे. जब श्रमिक स्पेशल शुरू हुई तब रेलवे
द्वारा तथा हमारे साथ अन्य संस्थाओं द्वारा खाद्य सामग्री इत्यादि के विरतण में सारी
सावधानियां तार-तार नजर होती दिखीं. इसके बाद भी हमलोग जितना हो सके उतनी सावधानी बरतते
रहे. इसी कारण से हम सभी सुरक्षित बने रहे.
धीरे-धीरे स्थितियाँ
सामान्य होने लगीं किन्तु कुछ चीजों को मैंने आदत बना लिया. मास्क एवं घर मे बनाये
गए सेनिटाइजर का लगातार उपयोग किया जाता रहा. (यदि आवश्यकता हो तो सेनिटाइजर की
डिटेल दे दूंगा) इस कारण से स्वास्थ्य में कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि इसका
लाभ ही मिला. मैं स्वयं स्नोफिलिया का मरीज हूँ पर घर मे ही बनाये गए डबल लेयर मास्क
के लगातार उपयोग से यह समस्या इस वर्ष नहीं हुई.
वर्ष 2021 में इस वायरस ने अपने द्वितीय चरण की शुरुआत की
तब मैं स्थानांतरण के कारण बाँदा में था. बाँदा में मेरे स्टाफ के अधिकतर लोग या
तो स्वयं इस वायरस से पीड़ित थे अथवा उनका परिवार. ऐसी विषम परिस्थिति में भी मैं हमेशा
मास्क, होममेड सेनिटाइजर और कॉटन ग्लब्ज के साथ साफ
रुमाल डिटॉल लगाया हुआ उपयोग करता रहा. यह भी प्रयास लगातार किया कि किसी ऐसी वस्तु
का स्पर्श न करूं जिसे सार्वजनिक रूप से छुआ गया हो अथवा स्पर्श किया जाता हो.
इस सावधानी का
प्रतिफल अच्छा ही मिला और मैं मार्च 2021 तक स्वस्थ बना रहा.
उरई में न रह पाने के कारण किसी तरह के सामाजिक कार्य नहीं कर पाने से मन में बैचेनी
थी. अतः इस बेचैनी से मुक्ति पाने के लिए मैंने प्लाज्मा एवं ब्लड डोनेट करने की सार्वजनिक
पोस्ट डाली. उस समय अज्ञानतावश मुझे यह पता नहीं था कि कोरोना पॉजिटिव से स्वस्थ
हुआ व्यक्ति ही कोरोना इलाज के लिए प्लाज्मा डोनेट कर सकता है. मेरी पोस्ट को देखकर
झांसी से किसी सज्जन का कॉल आया, जिनके लिए मैं 19 मार्च 2021 को झांसी पहुँचा. वहाँ पहुँचने पर जानकारी
हुई कि वह महिला मरीज जनपद जालौन
की ही निवासी है. फ़िलहाल,
ब्लड बैंक पहुंचने पर फॉर्म
इत्यादि भरने के बाद जब डॉक्टर ने मुझसे जानकारी ली तब ही मुझे बताया गया कि मैं प्लाज्मा
नहीं दे सकता. यह जानकारी होने पर मैं मायूस हो गया और इस सम्बंध में अनिल राज से भी
बात हुई.
खैर मैं वापस लौट
आया. तीसरे दिन सूचना प्राप्त हुई कि उस महिला मरीज का निधन हो गया. इस खबर से मेरा
मन अत्यधिक व्यथित हो गया. मैं स्वयं को दोषी ठहरा रहा था कि मेरे कारण उस मरीज के
परिजन में उम्मीद जागी थी जिसे मैंने नाउम्मीद कर दिया और उनका एक अमूल्य दिन बर्बाद
कर दिया. मैं बहुत ही परेशान था और इसकी कहीं न कहीं भरपाई करना चाहता था. इसलिए मैंने
स्वयं को बन्धन मुक्त कर हरसम्भव प्रयास किया पॉजिटिव होने का. मेडिकल कॉलेज में ब्लड
डोनेट किया. कोरोना पॉजिटिव मरीज की असावधानी से हेल्प की, जिसका नतीजा 26 मार्च को निकला कि मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया.
बाँदा में चेक कराने
के बाद अवकाश पर घर आया. मोबाइल पर प्राप्त सूचना से पॉजिटिव होने का पता चला. अब
मेरा प्रयास था स्वस्थ होने का. इसलिए मैंने अपने चिकित्सक मित्र एवं बड़े भाई तथा भतीजे
से सम्पर्क किया जो चिकित्सक हैं. उनके द्वारा बताई गईं दवा ली गई. चूँकि मेरी बचपन
से आदत में रहा है अंग्रेजी दवाओं का यथासम्भव तब तक सेवन न करना जब तक कि अत्यावश्यक
न हो. इस कारण मैंने दादी-नानी के नुस्खे अपनाए. सबसे पहले जब बुखार शुरू हुआ और कमर
से लेकर घुटनो, पिंडलियों तथा पंजों में भयानक दर्द होने
लगा तो घरेलू काढ़ा, जिसमें मेरे द्वारा कुछ अतिरिक्त चीजें भी मिलाई गईं, का इस्तेमाल किया. फ्रिज का पानी न पीकर सादा पानी
पिया. इससे बुखार में राहत मिली और दर्द भी कुछ कम हुआ. बुखार कम होना शुरू हुआ
मगर रोज शाम 7 से सुबह 6 बजे तक उसके आने का नियम बना रहा. खाने में रोटी, पालक या लौकी मिलाकर बनाई
जाती. यथासम्भव हरी सब्जियां, मोंठ, रोसा, सोयाबीन की दाल का
उपयोग, मूंगदाल लौंग, लहसुन के साथ पीना,
रोटी कम दाल, सब्जी का ज्यादा सेवन, शरीर मे तरलता बनाये रखने के लिए तरबूज का सेवन लगातार शुरू किया. इसी तरह कूलर, ऐसी का इस्तेमाल बन्द सिर्फ पंखे का उपयोग, डिटॉल साबुन एवं लिक्विड का प्रयोग, नियमित वस्त्र बदलने आदि से बुखार की मात्रा कम होती
गई. शरीर मे जकड़न अभी भी बनी हुई थी और भारीपन भी था. इस कारण घर से पैदल चलकर अपने
रेलवे आवास पर जाता था, जहाँ मैंने सैकड़ों पेड़ लगाए हैं, उन्ही के बीच दिनभर बैठे या
या लेटे रहता. पैदल चलने से पसीना आने से भारीपन कम होने लगा और हरियाली में रहने से
शुद्ध हवा मिली, जिस वजह से शरीर मे फुर्ती बढ़ने लगी.
इसी बीच 6 अप्रेल को अवकाश समाप्त होने के कारण प्राइवेट वाहन
से कार्यस्थल पहुँचा, जहाँ पहले से ही बोल दिया था कि मैं कार्यसमय में अकेला ही कुछ
दिन कार्य करूँगा. लगातार स्वयं को व्यस्त रखने और एक पल के लिए भी न घबराने से 16 तारीख को कार्य स्थल पर ही हुई जांच में निगेटिव हो
गया. इसके बाद 24 को झांसी में प्लाज्मा डोनेट किया. अब वह
मरीज स्वस्थ है. मुझे नहीं पता वो कौन है? उसे देखा नहीं सिर्फ परिजन को देखा पर सुकून
है कि मैं ऐसा कर पाया.
मुझे नहीं पता कि
मेरी बात से किसे अच्छा लगेगा, किसे नहीं पर इतना कहूंगा कि जब मैं जबरन पॉजिटिव हो
सकता हूँ और बिना घबराए चंद दिनों में स्वस्थ हो सकता हूँ तो अन्य क्यों नहीं? बस पॉजिटिव के साथ पॉजिटिव सोच की जरूरत है. शरीर
है तो बीमारियाँ लगी रहेंगी पर यदि बीमारियों से दूर रहना है. यदि बीमार हो गए तो स्वस्थ
होना है. इसलिए सोच को आशावादी रखिये और सावधानी जरूर बरतिए. अच्छा खाइए शुद्ध खाइए.
पेड़ जरूर लगाइए, कच्ची जमीन नहीं तो गमलों में लगाकर घर को हरा भरा रखिये. हर छोटी
से छोटी बीमारी के लिए अस्पताल मत भागिए. आप के घर मे ही उनकी दवा है. सीखिए, इस्तेमाल
कीजिये और स्वस्थ रहिये, स्वस्थ रखिये.
++
कोरोना संक्रमित को प्लाज्मा देने की सदेच्छा रखने के चलते स्वयं को कोरोना संक्रमित कर लेने की जिद तथा उसके बाद जल्द से जल्द स्वस्थ कर लेने का विश्वास रखने वाले रवि शक्या रेलवे के अपनी सेवाएँ दे रहे हैं. सामाजिक कार्यं में सक्रियता से भागीदारी करने वाले रवि जी ने अपनी कहानी हमें whatsapp पर हमारे अनुरोध पर भेजी. आप भी परिचित हों, उनकी आत्मशक्ति से.
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