कोरोना ने सबसे पहले जकड़ा था ज्योति, मेरी भाभी, सबसे छोटे भाई की पत्नी को. उसे तुरंत आइसोलेट किया गया. वृद्ध सास-ससुर के मन को संभालने-समझने वाली विनम्र ज्योति के सामने वायरस-असुर टिक नहीं पाया, दो दिन के ज्वर के बाद भाग निकला. फिर 6-7 दिन बाद संदीप, ज्योति के पति, मेरे छोटे भाई पर उसने पूरी तैयारी के साथ धावा बोला. ठण्ड के साथ तेज बुखार. उसके आइसोलेशन में जाने के साथ गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी मम्मी के कन्धों पर आ गई.
संदीप ने एक-दो
दिन देखने के बाद संजय भैया को खबर की जो मुझसे छोटा भाई है. संजय और नीना ने दूसरे शहर में रहते हुए
भी चिकित्सा पर निगरानी शुरू की. उन्होंने डॉक्टर से सम्पर्क रखा और रात को जाग-जाग कर ऑक्सीजन-लेवल पर नज़र
रखी. तीन-चार दिन के बाद
जैसे ही ऑक्सीजन लेवल घटना शुरू हुआ, मेरी प्रिंसिपल भाभी नीना ने एम्बुलेंस बुलाकर संदीप को ज्योति के साथ
अस्पताल भिजवाया और दोनों दमुआ से नरसिंहपुर आ गए. बिना आराम किए दिन-दिन भर काम कर सकने वाली हमारी
82 साल की मम्मी के लिए घर
संभालना कठिन नहीं है पर इस समय आशंका और चिंता से टूटी हुई थीं, ऐसे में बड़े बेटे-बहू के आने से उन्हें
निश्चित ही हौसला मिला.
संजय ने संदीप
को अस्पताल ले जाकर ड्रिप लगवाईं दो-तीन दिन. तब इन्फेक्शन कम होने के कारण डॉक्टर ने घर में
रखकर चिकित्सा कराने की सलाह दी थी. ऑक्सीजन-लेवल मेंटेन करने के लिए संजय के घनिष्ठ मित्र सुनील जायसवाल ने
कन्सेन्ट्रेटर दिया. एकबारगी
लगा, अब अस्पताल में भर्ती
करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. सीटी स्कैन स्कोर 6 था
और चिकित्सा डॉक्टर के परामर्श पर ही चल रही थी पर दो दिन बाद लगा, भर्ती करना ही उचित होगा.
डॉ. नीखरा के
कोविड अस्पताल में ऑक्सीजन-बेड के लिए संजय और सुनील ने काफ़ी प्रयास किया पर वे
खाली नहीं थे. इतना डरावना
समय है, सचमुच कहीं कोई
खाली बेड खाली नहीं है पर सामान्य बेड उसे मिल गया और निजी स्तर पर
ऑक्सीजन-सिलिंडर की सतत आपूर्ति संजय और संदीप के मित्रों के माध्यम से हमने रखी.
संजय ने
अस्पताल-घर एक कर दिया. चिकित्सा
के दौरान हर समय संदीप के पीछे खड़े रहे. नीना ने घर से मोर्चा संभाले रखा. संजय की दौड़-धूप और युवा डॉ. अभिषेक नीखरा की कुशल चिकित्सा से संदीप 7
दिन बाद स्वस्थ हो गए. अभी भी बहुत निगरानी आवश्यक है.
मैं अपने सभी
मित्रों- रिश्तेदारों के प्रति कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मुझे संदेश भेजे, फोन किये, लगातार अपडेट लेते रहे और मनोबल बढ़ाते रहे.
मैंने रात ढाई बजे ऑक्सीजन सिलिंडर
के लिए पोस्ट डाली थी, इतनी
रात से मुझे मित्रों ने मदद के संदेश देने शुरू किये. यह उपकार है. बचपन से सखी, अनिता केसकर मैं जानती हूँ , उसे कभी भी पुकार सकती हूँ. अचला जायसवाल ने कई बार फोन किया... वीना
बुंदेला... श्री नरेंद्र सतीजा जी, जिनकी सूचना से सिलिंडर मिला... श्री पलाश सुरजन जी...डॉ. लोकेन्द्र सिंह
जी... मधुर माहेश्वरी जी, मुकेश
नेमा... अमृता जैन देव... पंकज नेमा... आभार कहना नाकाफी होगा.
नहीं भूल सकते ‘कमलेश’ की नि:स्वार्थ और
अथक सहायताओं को. उसने
गृह-सहायक से अधिक पारिवारिक सदस्य की तरह जिम्मेवारी संभाली.
बहुत सावधानी
रखें आप सब. घर में कोरोना
की दस्तक एक बहुत बड़ी परीक्षा है.
नागपुर निवासी दीप्ति कुशवाह जी के शब्दों में ही उनके परिजनों की कहानी. कोरोना संक्रमण से किस तरह आत्मविश्वास, सहयोग और पारिवारिक अपनत्व के द्वारा पूरा परिवार स्वस्थ हुआ. कोरोना विजेता के रूप में दीप्ति जी के सभी परिजनों का, सहयोगियों का हार्दिक वंदन-अभिनन्दन.
परिवार व मित्रो के सहयोग से हर मुश्किल से उभर सकते है सच है.... शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत कठिन होता है । मैं भी घर में एक माह आईसोलेट रहा और घर में किसी को भी संक्रमित होने नही दिया
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